सिंधु जल संधि पर भारत ने पाकिस्तान के लिए उठाया बड़ा कदम
भारत ने 1960 में पाकिस्तान के साथ हुई सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को लेकर बड़ा फैसला लेते हुए इस पर आधिकारिक रूप से पुनर्विचार और संशोधन के लिए नोटिस जारी कर दिया है। यह कदम पाकिस्तान द्वारा भारत की जलविद्युत परियोजनाओं पर आपत्ति और विवाद समाधान प्रक्रिया में असहयोग के बाद उठाया गया।
पाकिस्तान को 90 दिनों का अल्टीमेटम
सरकार की ओर से भेजे गए नोटिस में स्पष्ट किया गया है कि पाकिस्तान को 90 दिनों के भीतर वार्ता शुरू करनी होगी। यदि पाकिस्तान इस अवधि में सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं देता, तो भारत अनुच्छेद 12(3) के तहत संधि में एकतरफा संशोधन कर सकता है।

क्यों उठाया गया ये कदम?
पाकिस्तान ने भारत की किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं पर आपत्ति जताई थी और फिर एकतरफा रूप से तटस्थ विशेषज्ञ की प्रक्रिया से हट गया। भारत का कहना है कि यह संधि के नियमों का उल्लंघन है और इससे दोनों देशों के बीच बनी पारस्परिक समझ पर असर पड़ा है।
क्या शिमला और ताशकंद समझौतों पर भी असर पड़ेगा?
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए शिमला समझौता (1972) और ताशकंद समझौता (1966) ऐतिहासिक रूप से द्विपक्षीय संबंधों की बुनियाद हैं। हालांकि, फिलहाल सरकार की ओर से इन समझौतों को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सिंधु जल संधि पर भारत के सख्त रुख को देखते हुए इन पर भी पुनर्विचार की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
आगे क्या?
इस घटनाक्रम ने भारत-पाक संबंधों में एक नया मोड़ ला दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पाकिस्तान समय पर भारत के नोटिस का जवाब नहीं देता, तो क्षेत्रीय जल विवाद गहराने की आशंका है। वहीं भारत अपनी रणनीति के तहत जल संसाधनों पर पूर्ण नियंत्रण को प्राथमिकता दे रहा है।
सिंधु जल संधि का ऐतिहासिक संदर्भ
सिंधु जल संधि को 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में साइन किया था। इस संधि के तहत भारत को पूर्वी नदियों – रावी, ब्यास और सतलुज, और पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब का जल उपयोग करने का अधिकार दिया गया।
यह संधि आज तक सबसे स्थिर द्विपक्षीय समझौतों में मानी जाती रही है, जो युद्धों और तनाव के बावजूद भी लागू रही। लेकिन अब भारत ने इसे पुनर्समीक्षा के लिए खुला छोड़ दिया है।