भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप लड्डू गोपाल की आराधना में भाव का सबसे ज़्यादा श्रेष्ठता होता है। यदि आपके अंदर सच्चा प्रेम, वात्सल्य और सेवा की भावना है, तो भगवान स्वयं उसे अंगीकार करते हैं।
प्रयाण में लड्डू गोपाल को साथ ले जाना
यदि आप लड्डू गोपाल को अपने बालक के रूप में मानते हैं, तो उन्हें प्रयाण में साथ ले जाना भावपूर्ण रूप से मुनासिब और मंगल माना जाता है।
- तीर्थ यात्रा, देवालय दर्शन या धार्मिक आयोजन के वक्त उन्हें साथ ले जाना सद्कर्मशील होता है।
- परंतु साथ में ले जाने से पहले पोशाक, सिंहासन, भोग, जल और शुद्धता की संपूर्ण इंतजाम होना आवश्यक है।

किन हालात में साथ ले जाना उचित नहीं?
शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि कब लड्डू गोपाल को निलय पर ही छोड़ना चाहिए:
- यदि आप भीड़भाड़ वाले बाजार, सिनेमा हॉल, बार या अन्य अशुद्ध जगहें पर जा रहे हैं।
- जब आप सफ़र में उनकी सही तरह से सेवा, स्नान और भोग की इंतजाम नहीं कर सकते।
- जब ठहरने की जगह उचित न हो या सफ़र लंबी व कष्टदायक हो।
बौद्धिक पूजा का महत्व
ऐसे काल में आप गोपाल जी को निलय में मौजूद कर मानसिक रूप से उनकी सेवा कर सकते हैं।