कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने 1981 का एक किस्सा याद दिलाते हुए कहा कि कैसे इंदिरा गांधी ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) को भारत को 5.8 अरब डॉलर का लोन देने के लिए मना लिया था।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने रविवार को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तारीफ करते हुए एक खास वाकया साझा किया। उन्होंने अपने आधिकारिक ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) हैंडल पर एक पोस्ट में बताया कि 1981 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत को 5.8 अरब डॉलर का कर्ज मंजूर किया था, जबकि अमेरिका ने इस पर आपत्ति जताई थी और बैठक में शामिल होने से परहेज किया था।
जयराम रमेश ने लिखा, “9 नवंबर, 1981 को आईएमएफ ने भारत को 5.8 अरब डॉलर का कर्ज मंजूर किया। अमेरिका को इससे कड़ी आपत्ति थी और उसने कार्यकारी बोर्ड की बैठक में भाग नहीं लिया। लेकिन इंदिरा गांधी आईएमएफ को यह समझाने में सफल रहीं कि तेल की कीमतें तीन गुना बढ़ने के बाद भारत के लिए यह कर्ज कितना जरूरी है।”
रमेश ने कहा- इतिहास की अनोखी घटना
उन्होंने आगे बताया कि फरवरी 1984 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने बजट पेश करते हुए यह घोषणा की थी कि भारत ने आईएमएफ कार्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है और स्वीकृत राशि में से करीब 1.3 अरब डॉलर का उपयोग नहीं किया गया। रमेश ने इसे आईएमएफ के इतिहास में एक अनोखी घटना करार दिया।
- उन्होंने लिखा, “29 फरवरी, 1984 को जब प्रणब मुखर्जी ने बजट पेश किया तो इंदिरा गांधी ने उनसे यह घोषणा करवायी कि भारत ने आईएमएफ कार्यक्रम सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है और स्वीकृत रकम में से करीब 1.3 अरब डॉलर का उपयोग नहीं किया गया।
- यह शायद आईएमएफ के इतिहास में एक अनूठा उदाहरण है।”
जयराम रमेश का यह बयान उस समय आया है जब आईएमएफ ने पाकिस्तान के आर्थिक सुधार कार्यक्रम की पहली समीक्षा को मंजूरी दे दी है। इस फैसले के बाद पाकिस्तान को करीब 1 अरब डॉलर की राशि मिलेगी।
आईएमएफ ने दी 1 अरब डॉलर की राशि
- आईएमएफ ने अपने ‘एक्स’ पोस्ट में कहा, “आईएमएफ बोर्ड ने पाकिस्तान के आर्थिक सुधार कार्यक्रम की पहली समीक्षा को मंजूरी दे दी है, जिससे लगभग 1 अरब डॉलर की राशि जारी की जाएगी।
- यह मजबूत कार्यक्रम क्रियान्वयन को दर्शाता है, जिसने पाकिस्तान की आर्थिक सुधार प्रक्रिया को गति दी है।”
भारत ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है और कहा है कि वह देश जो लगातार सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देता है, उसे इस तरह की आर्थिक मदद देना वैश्विक संस्थाओं की साख को खतरे में डाल सकता है और अंतरराष्ट्रीय मानकों को कमजोर करता है। सूत्रों के मुताबिक, भारत आईएमएफ की इस वोटिंग में हिस्सा नहीं ले पाया क्योंकि आईएमएफ के नियम “ना” में वोटिंग की इजाजत नहीं देते हैं, लेकिन भारत ने अपने विरोध को साफ तौर पर जाहिर किया है।
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