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CJI BR Gavai: न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई बने भारत के नए प्रधान न्यायाधीश

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जस्टिस गवई देश के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं। जस्टिस गवई का कार्यकाल छह महीने का होगा। वह 23 नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे। 

न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) का पद संभाल लिया। उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ ग्रहण कराई। सीजेआई बीआर गवई ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और अन्य गणमान्य लोगों का अभिवादन स्वीकार किया। जस्टिस गवई ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की जगह ली, जो बीते दिन ही सेवानिवृत्त हुए थे। इससे पहले बीते माह की 30 तारीख को कानून मंत्रालय ने जस्टिस गवई की भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की अधिसूचना जारी की थी। 16 अप्रैल को सीजेआई खन्ना ने केंद्र सरकार से उनके नाम की सिफारिश की थी।

देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश बने जस्टिस गवई

परंपरा के अनुसार, वर्तमान सीजेआई अपने उत्तराधिकारी के रूप में सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश की सिफारिश करते हैं। जस्टिस गवई वरिष्ठता के क्रम में सबसे आगे थे, जिसके चलते उनके नाम की सिफारिश की गई। कानून मंत्रालय ने सीजेआई जस्टिस खन्ना से उनके उत्तराधिकारी का नाम देने की आधिकारिक अपील की थी।

ऐसा रहा करियर

  • 16 मार्च, 1985 को वकालत शुरू करने वाले न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील के रूप में कार्य कर चुके हैं।
  • उन्होंने अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में सेवा दी।
  • 17 जनवरी, 2000 को उन्हें नागपुर खंडपीठ के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किया गया।
  • 14 नवंबर, 2003 को वे बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश बने और 12 नवंबर, 2005 को स्थायी न्यायाधीश नियुक्त हुए।
  • 24 मई, 2019 को उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया।
  • न्यायमूर्ति गवई सर्वोच्च न्यायालय में कई ऐसी संविधान पीठों में शामिल रहे, जिनके फैसलों का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा।
  • दिसंबर 2023 में, उन्होंने पांच जजों की संविधान पीठ में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा।


पिता रहे हैं बिहार और केरल के पूर्व राज्यपाल

  • जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था।
  • जस्टिस गवई के पिता दिवंगत आरएस गवई भी एक मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और बिहार और केरल के पूर्व राज्यपाल रहे।
  • जस्टिस गवई देश के दूसरे अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले मुख्य न्यायाधीश होंगे।
  • उनसे पहले जस्टिस केजी बालाकृष्णन साल 2010 में यह उपलब्धि हासिल कर चुके हैं।

कई मामलों पर जस्टिस बीआर गवई ने सुनाए ऐतिहासिक फैसले
राजीव गांधी हत्याकांड (2022)

जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने 30 साल से ज्यादा समय से जेल में बंद दोषियों की रिहाई को मंजूरी दी, यह मानते हुए कि तमिलनाडु सरकार की सिफारिश पर राज्यपाल ने कोई कार्रवाई नहीं की थी।

वणियार आरक्षण (2022)


तमिलनाडु सरकार को वणियार समुदाय को विशेष आरक्षण देने के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया, क्योंकि यह अन्य पिछड़ा वर्गों के साथ भेदभावपूर्ण था।

नोटबंदी (2023)


जस्टिस गवई ने 2016 की नोटबंदी योजना को 4:1 बहुमत से वैध ठहराते हुए कहा कि यह निर्णय केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के बीच परामर्श के बाद लिया गया था और यह “अनुपातिकता की कसौटी” पर खरा उतरता है।

ईडी निदेशक का कार्यकाल (2023)


जुलाई 2023 में जस्टिस गवई की बेंच ने प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को अवैध करार दिया और उन्हें 31 जुलाई 2023 तक पद छोड़ने का निर्देश दिया था।

बुलडोजर कार्रवाई (2024)


2024 में, जस्टिस गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि केवल आरोपी या दोषी होने के आधार पर किसी की संपत्ति को ध्वस्त करना असंवैधानिक है। कार्रवाई बिना कानूनी प्रक्रिया के नहीं कर सकते, अगर होती है तो संबंधित अधिकारी जिम्मेदार होगा।

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