पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी अड्डों को निशाना बनाते हुए भारत द्वारा चलाया गया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (Operation Sindoor) ने वैश्विक मंच पर हमारी ताकत को साबित कर दिया है। आतंकवादी ठिकानों को अत्यंत सटीकता के साथ ध्वस्त करने के साथ-साथ, भारत ने दुश्मन के हमलों को भी प्रभावी ढंग से नाकाम किया। इसमें आकाश मिसाइलों (Akash Missile) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दुश्मन के ड्रोन और मिसाइलों को धराशायी कर दिया। जमीन से आकाश में दागी जाने वाली इन मिसाइलों को पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने विकसित किया।
आकाश मिसाइल के निर्माण में और भारत की वायु रक्षा प्रणाली को अजेय बनाने के पीछे एक व्यक्ति की निरंतर मेहनत और दृढ़ निश्चय छिपा है। वह हैं — प्रख्यात DRDO वैज्ञानिक ‘प्रहलाद रामाराव’ (Prahlada Ramarao)।
उनका जीवन प्रेरणादायक है।
प्रहलाद रामाराव का जन्म 1947 में कर्नाटक के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), विक्रम साराभाई स्पेस स्टेशन (VSSC) में नौकरी के अवसर मिले, लेकिन उन्होंने नौकरी स्वीकार नहीं की। माँ की सलाह पर उच्च शिक्षा के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) — बेंगलुरु में प्रवेश लिया। वहाँ पढ़ाई के दौरान ही उन्हें DRDL — हैदराबाद की एक प्रयोगशाला में काम करने का मौका मिला। वहीं उनकी मुलाकात भारत के ‘मिसाइल मैन’ और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से हुई। तभी से उन्होंने उन्हें अपना मार्गदर्शक मान लिया और उनकी टीम के साथ काम किया।
युवा होते हुए भी अनुभव में श्रेष्ठ
1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक की शुरुआत में अब्दुल कलाम की टीम ने एक अद्भुत परियोजना शुरू की — इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP)। इसका उद्देश्य अग्नि, पृथ्वी, आकाश, त्रिशूल और नाग नामक पाँच मिसाइल प्रणालियों का विकास करना था। उस समय केंद्र सरकार ने इस योजना के लिए अप्रत्याशित रूप से ₹300 करोड़ का भारी बजट मंजूर किया।
1983 में IGMDP को पूरी स्वीकृति मिली। इस परियोजना में आकाश मिसाइल प्रणाली के विकास का दायित्व प्रहलाद रामाराव ने अपने कंधों पर उठाया। अब्दुल कलाम ने उन पर अपार विश्वास दिखाते हुए यह विभाग उन्हें सौंपा। जब यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ, तब रामाराव केवल तीस की उम्र में थे।
इन पाँच मिसाइल प्रणालियों में आकाश को विशेष महत्व प्राप्त था। ज़मीन से हवा में लक्ष्य भेदने वाली ‘आकाश’ मिसाइल पर केंद्र सरकार का भी विशेष ध्यान था। IGMDP के बजट में भी इसे प्राथमिकता दी गई।
मिसाइल का विकास पूरा होने के बाद 1990 में ट्रायल्स शुरू हुए। विभिन्न चरणों में इसमें सुधार किया गया। 2005 तक यह हवा में तेज़ी से आ रहे लक्ष्यों को पहचानने और उन्हें सटीकता से भेदने में पूरी तरह सक्षम हो चुकी थी। इसके साथ ही आकाश भारत के रक्षा भंडार में एक अजेय अस्त्र के रूप में स्थापित हो गई। इसके पीछे प्रहलाद रामाराव की अथक मेहनत निहित है — इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं।
“आकाश मेरी ‘प्यारी संतान’ है”
प्रहलाद रामाराव आकाश मिसाइल को अपनी प्यारी संतान कहते हैं। जब यह मिसाइल अपने लक्ष्य को सटीकता से भेदती है, तो उसे अपने जीवन के सबसे गर्वपूर्ण क्षणों में से एक मानते हैं।
2000 में DRDO से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने पुणे स्थित डिफेंस टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी में कुलपति के रूप में कार्य किया। वर्तमान में वे विश्व की ऊर्जा चुनौतियों का क्रांतिकारी समाधान खोजने के लिए कोल्ड फ्यूज़न रिएक्टर पर अनुसंधान कर रहे हैं।
हाल ही में पाकिस्तान पर नियंत्रण स्थापित करने में आकाश मिसाइल की भूमिका के साथ एक बार फिर प्रहलाद रामाराव का नाम देशभर में गूंज रहा है। भारत के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों में उनका नाम स्थायी रूप से दर्ज हो चुका है। केवल आकाश मिसाइल ही नहीं, बल्कि ब्रह्मोस मिसाइल के निर्माण में भी उनकी भूमिका अतुलनीय रही है। वे ब्रह्मोस परियोजना के निदेशक के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। उनकी सेवाओं की सराहना करते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2015 में पद्मश्री से सम्मानित किया।