मध्य प्रदेश: पूरी दुनिया में अपनी आध्यात्मिक ज्ञान के लिए चर्चित जगद्गुरु रामभद्राचार्य को तो कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं। इसी कड़ी में और एक नई उपाधि जुड़ने जा रही है। डाॅ. हरीसिंह गौर यूनिवर्सिटी, सागर के 33 वें दीक्षांत समारोह में जगदगुरू रामभद्राचार्य को यूनिवर्सिटी द्वारा डी.लिट की उपाधि प्रदान की जाएगी। इसके लिए बाकायदा मध्यप्रदेश की सागर यूनिवर्सिटी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से अनुमति मांगी थी। राष्ट्रपति भवन से अनुमति मिल गई है। अनुमति मिलने के बाद सागर यूनिवर्सिटी में दीक्षांत समारोह की तैयारी शुरू हो गयी है। लेकिन अभी दीक्षांत समारोह की तिथि तय नहीं हुई है, जल्द ही यूनिवर्सिटी द्वारा इसकी घोषणा होगी।
राष्ट्रपति भवन से ग्रीन सिग्नल मिलने का था इंतजार:
यूनिवर्सिटी के मीडिया अधिकारी डाॅ. विवेक जायसवाल ने अनुसार डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय का 33 वां दीक्षांत समारोह बहुत जल्द ही आयोजित होगा। जैसा कि पूर्व में सूचना आयी थी कि जगदगुरू स्वामी रामभद्राचार्य को विश्वविद्यालय मानद उपाधि प्रदान करेगा। इसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा पहल की गयी थी और राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए प्रस्ताव भेजा गया था। ‘राष्ट्रपति भवन द्वारा मंजूरी मिल चुकी है, बहुत जल्द ही विश्वविद्यालय का 33 वां दीक्षांत समारोह आयोजित किया जाएगा, जिसकी तैयारियां शुरू हो गयी है।.”
करीब दर्जन भाषाओं के जानकार हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य:
जगदगुरू स्वामी रामभद्राचार्य की पहचान एक कथाकार, प्रवचनकर्ता, शिक्षाविद और बहुभाषाविद के तौर पर है। उनका असली नाम गिरधर मिश्रा है और उनका जन्म यूपी के जौनपुर में हुआ था। जौनपुर को शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण माना जाता है। जगद्गुरू रामभद्राचार्य रामानंद संप्रदाय के चार जगद्गुरूओं में से एक हैं। जिन्हें वर्ष 1988 में जगद्गुरू पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। रामभद्राचार्य की बचपन में ही आंखों की रोशनी चली गयी थी। इसके बावजूद उन्होंने 22 भाषाएं सीखी और करीब 80 ग्रंथों की रचना की है। उनके 80 ग्रंथों में 4 महाकाव्य है, जिनमें दो संस्कृत और दो हिंदी में है। शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देते हुए स्वामी रामभद्राचार्य ने दिव्यांग विश्वविद्यालय की स्थापना की है, जिसके आजीवन संस्थापक कुलाधिपति है। स्वामी रामभद्राचार्य को भारत सरकार द्वारा 2015 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया जा चुका है।