कौन से प्रोजेक्ट अटके; इनमें देरी की क्या वजह?
रक्षा परियोजनाओं में IAF चीफ देरी का मुद्दा क्या है? कौन सी रक्षा परियोजनाएं वर्षों की देरी का सामना कर रही हैं? कौन से अफसर इससे पहले रक्षा परियोजनाओं में देरी का मुद्दा उठा चुके हैं? सरकारों ने इसे लेकर क्या कदम उठाए हैं? आइये जानते हैं.
भारत में बने हथियारों की दुनियाभर में हो रही चर्चा के बीच, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह इनके निर्माण में होने वाली देरी का मुद्दा उठाया है। बीते चार महीने में यह दूसरा मौका है जब वायु सेना प्रमुख रक्षा परियोजनाओं में हो रही देरी को लेकर मुखर हुए हैं। इससे पहले मौजूदा चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने भी बीते साल सितंबर में कुछ ऐसा ही कहा था। उन्होंने कहा था कि भारत की रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया इतनी धीमी है कि सशस्त्र बल जिस दर से तकनीक को अपनाना चाहते हैं, उसमें काफी मुश्किल आती है।
रक्षा परियोजनाओं में कितनी देरी?
भारत में IAF चीफ रक्षा परियोजनाओं में देरी की शिकायतें कोई नई नहीं हैं। 2014 में रक्षा मंत्रालय IAF चीफ ने एक सूची जारी की थी, जिसमें रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के उन प्रोजेक्ट्स की जानकारी दी गई थी जिनमें लंबी देरी हो चुकी थी। इनमें से परियोजनाएं अभी भी पूरे नहीं हुई हैं। इनमें देश के पहला स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस से लेकर एयरो इंजन कावेरी तक के नाम शामिल हैं।
कौन सी परियोजना कितनी देरी से चल रही है?
1. लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस एमके1 और एमके2
इस प्रोजेक्ट को 1983 में मंजूरी मिली। 1994 में बनने की डेडलाइन रखी गई। कई प्रतिबंधों और आपूर्तियों में दिक्कत के चलते यह प्रोजेक्ट लगातार टल रहा है।
- पहले एलसीए एमके-1 स्क्वाड्रन के दो विमानों को जुलाई 2016 को सुलुर में तैयार किया गया। यानी सिर्फ फाइटर जेट्स को तैयार करने में ही 33 साल लग गए।
- तेजस एमके-1 और तेजस एमके-1ए का मकसद भारतीय वायुसेना में सेवा दे रहे पुराने मिग-21 फाइटर जेट्स की धीरे-धीरे जगह लेना था। वहीं, तेजस एमके-II को मिग-29, मिराज और जैगुआर लड़ाकू विमानों को रिप्लेस करना था।
- यह सभी विमानों अगले दशक से सेवा से बाहर होना शुरू हो जाएंगे। ऐसे में वायुसेना को तेजस एमके-1 और एमके-II की डिलीवरी काफी पहले मिल जानी थी, जिससे पायलटों की ट्रेनिंग से लेकर इन्हें सक्रिय सेवा में लाया जा सकता।
तेजस प्रोजेक्ट में देरी की वजह क्या?
- स्वदेशी इंजन की गैरमौजूदगी की वजह से विदेशी तकनीक और इसके पार्ट्स पर निर्भरता के कारण परियोजना लगातार अटकी है। 1998 में भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका की तरफ से कई प्रतिबंध लगा दिए गए। ऐसे में फाइटर जेट के इंजन के लिए कलपुर्जे मिलने में खासी देरी हुई। 2013 में डीआरडीओ के तत्कालीन महानिदेशक वीके सारस्वत ने कहा था कि अमेरिकी प्रतिबंधों ने भारत के तेजस प्रोजेक्ट को दो दशक पीछे ढकेल दिया।
- इन प्रतिबंधों की वजह से सभी सप्लायरों ने समझौते तोड़ लिए और यूरोपीय फर्म्स ने भी सहयोग नहीं किया। इसके चलते तेजस के डिजायन को स्वदेशी तकनीक के इस्तेमाल लायक बनाया गया और नई प्रोडक्शन फैसिलिटी बनाने की मजबूरी पैदा हुई। इससे प्रोजेक्ट की कीमत में भी भारी बढ़ोतरी हुई।
- कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि जो तेजस लड़ाकू विमान बने, उनमें करीब 53 कमियां रहीं, जो कि युद्ध क्षेत्र में वायुसेना पर भारी पड़ सकती हैं। इन कमियों को दूर करने में भी डीआरडीओ और एचएएल को काफी समय लग गया। अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक्स ने समझौते के बावजूद अपने जीई-404 इंजन की आपूर्ति में देरी की। भारत को इसके पहले इंजन ही 2025 में मिल पाए हैं।
- 2015 में इस प्रोजेक्ट से जुड़ी कैग (CAG) की रिपोर्ट में सामने आया कि देरी की वजह से वायुसेना को करीब 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, क्योंकि उसे अपने पुराने लड़ाकू विमानों के अस्थायी इस्तेमाल को बढ़ाने में काफी खर्च करना पड़ा है।