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Iran–Israel तनाव: भारत की आर्थिक चिंताएं बढ़ीं

Surekha Bhosle
Surekha Bhosle
Iran–Israel तनाव: भारत की आर्थिक चिंताएं बढ़ीं

47,700 करोड़ रुपये का व्यापार दांव पर

  • भारत का ईरान और इज़राइल दोनों के साथ बड़ा व्यापारिक रिश्ता
  • फारसी खाड़ी के रास्ते तेल आपूर्ति पर सीधा असर

ईरान से कच्चे तेल की निर्भरता

  • भारत की ऊर्जा ज़रूरतों में ईरान की बड़ी भूमिका
  • तनाव से तेल आपूर्ति और दामों पर प्रभाव

जंग के बीच भारत के 47 हजार करोड़ रुपए दांव पर लगे हैं. इतनी अरबों की रकम भारत ने चाबहार पोर्ट पर दांव पर लगाई है. अगर जंग तेज हुई तो भारत को अरबों का नुकसान हो सकता है।

ईरान (Iran) इजराइल (Israel) वॉर का असर भारत (India) पर भी दिखने लगा है. मिडिल ईस्ट में जंग के चलते भारत के 47 हजार करोड़ दांव पर हैं. दरअसल,भारत चाबहार पोर्ट को लेकर बेहद गंभीर है।

मई 2024 में भारत ने ईरान के शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल को 10 साल तक संचालित करने के लिए एक बड़ा समझौता किया।

यह पोर्ट भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधा ज़मीनी रास्ता उपलब्ध कराता है, जिससे पाकिस्तान को बाईपास किया जा सकता है. साथ ही, चीन के ग्वादर पोर्ट के प्रभाव को संतुलित करने में भी यह अहम भूमिका निभाता है।

हालांकि, ईरान( (Iran) इजरायल तनाव और पश्चिमी देशों के प्रतिबंध इस रणनीतिक परियोजना के लिए चुनौती बन सकते हैं. फिर भी, भारत और ईरान के अधिकारी लगातार संपर्क में हैं ताकि चाबहार पोर्ट और INSTC कॉरिडोर के काम में कोई रुकावट न आए. अगर जंग तेज होती है तो भारत को 47000 करोड़ का झटका कैसे लगेगा आइए जानते हैं?

क्यों अहम है चाबहार?

चाबहार पोर्ट भारत के लिए भू-रणनीतिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है. यह बंदरगाह भारत को ऐसे भूभागों से जोड़ता है, जहां अब तक पाकिस्तान के रास्ते ही पहुंचा जा सकता था. भारत की सरकारी कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) इसे संचालित करती है, जिसमें जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट और कांडला पोर्ट ट्रस्ट भागीदार हैं।

भारत के 47 हजार करोड़ दांव पर

भारत ने इस परियोजना में अब तक 8.5 करोड़ डॉलर (लगभग ₹710 करोड़) का निवेश किया है. इसके अतिरिक्त, एक्ज़िम बैंक की ओर से 15 करोड़ डॉलर का क्रेडिट लाइन और 40 करोड़ डॉलर का अतिरिक्त ऋण चाबहार-जाहेदान रेलवे परियोजना के लिए दिया गया है. कुल मिलाकर भारत अब तक 55 करोड़ डॉलर (करीब ₹4770 करोड़) की वित्तीय प्रतिबद्धता दे चुका है।

चाबहार-जाहेदान रेलवे प्रोजेक्ट पहले भारत की इरकॉन इंटरनेशनल को सौंपा गया था, लेकिन फंडिंग में देरी के चलते ईरान ने 2020 में उसे अलग कर दिया।

प्राइवेट निवेशकों की रुचि

2017 में अडानी ग्रुप और एस्सार जैसी कंपनियों ने चाबहार में निवेश में दिलचस्पी दिखाई थी, लेकिन अब तक कोई बड़ा निजी निवेश नहीं हो सका है. भारत सरकार लगातार भारतीय कंपनियों को इस रणनीतिक प्रोजेक्ट में भागीदारी के लिए प्रेरित कर रही है।

बढ़ते तनाव और संभावित खतरे

भारत और ईरान के अधिकारी INSTC (International North-South Transport Corridor) और चाबहार परियोजना को सफल बनाने के लिए निरंतर संपर्क में हैं. लेकिन हालिया समय में **ईरान-इजरायल के बीच सैन्य तनाव** और पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने चिंताओं को बढ़ा दिया है।

इन तनावों के चलते बीमा और लॉजिस्टिक्स सेवाओं पर असर पड़ सकता है. इसके अलावा पोर्ट का विकास और रेल कनेक्टिविटी धीमी हो सकती है और INSTC की सप्लाई चेन में व्यवधान आ सकता है।

अफगानिस्तान के लिए भी अहम

चाबहार पोर्ट अफगानिस्तान के लिए समुद्र तक पहुंच का एकमात्र वैकल्पिक मार्ग है, जो पाकिस्तान पर उसकी निर्भरता को कम करता है. भारत ने इसी पोर्ट के जरिए मानवीय सहायता—जैसे गेहूं और दालें—अफगानिस्तान भेजी हैं, जो इसे एक जीवनरेखा की तरह बनाता है।

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