भगवान जगन्नाथ (Jagannath) हर साल आसाढ़ की दूज को अपनी मौसी के घर मेहमानी के लिए पहुंचते हैं लेकिन आखिर उऩकी मौसी (mausee) हैं कौन और उऩका घर कितनी दूर है, वहां पहुंचने पर उनका स्वागत कैसे होता है ? जाहिर है ये सवाल आपके मन में भी आते ही होंगे तो आज आपको इन सवालों के जवाब इस लेख में मिल जायेंगे।
Jagannath Rath Yatra : कौन हैं भगवान जगन्नाथ की मौसी? जगन्नाथ मंदिर रथ यात्रा एक ऐसा पर्व है जिसे मनाने के लिए पूरे भारत से श्रृद्धालु पूरी पहुंचते हैं. उड़ीसा के पुरी शहर में लाखों लोगों का मेला लगता है। भगवान जगन्नाथ आषाढ़ मास की द्वितीया को अपने भाई बलराम, अपनी बहन सुभद्रा, के साथ रथ में सवार होकर अपनी मौसी गुंडिचा माता के मंदिर जाते हैं. जिसे उनकी मौसी का घर कहा जाता है. अपनी मौसी के घर जाकर वह 7 दिनों तक विश्राम करते हैं और फिर वापस जगन्नाथ पुरी लौट आते हैं।
Jagannath Rath Yatra : कौन हैं भगवान जगन्नाथ की मौसी?भगवान जगन्नाथ की ये लीला बहुत रहस्यमई है. इस यात्रा से पहले भगवान जगन्नाथ के पट 15 दिन के लिए बंद कर दिए जाते हैं, क्योंकि भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए ज्वर से पीड़ित हो जाते हैं और स्वस्थ होते ही वह अपनी मौसी के घर सैर पर निकल जाते हैं।
कौन हैं माता गुंडिचा ?
माता गुंडिचा, मंदिर निर्माण करने वाले राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी है और उनको भगवान की माता का दर्जा दिया गया है. गुंडिचा मंदिर, भगवान जगन्नाथ मंदिर से 3 किलोमीटर दूरी पर है. इसकी वास्तु कला को देखें तो वह कलिंग काल की प्रतीत होती है. माता गुंडिचा और इस यात्रा के बारे में कई कथाएं प्रचलित है.
माता गुंडिचा से जुड़ी पौराणिक कथा
उन्ही प्रचलित कथाओं में से एक कथा है कि, एक बार राजा इंद्रद्युम्न को सपने में भगवान जगन्नाथ के दर्शन दिए और कहा कि समुद्र के किनारे तुम्हें एक लकड़ी मिलेगी उससे मेरा निर्माण करो और वैसा ही हुआ राजा को एक लकड़ी का लट्ठा मिला और राजा ने भगवान जगन्नाथ का निर्माण करवाया।
उस मूर्ति के निर्माण करने के लिए शिल्पी नहीं मिल रहा था, तभी वहां एक बूढ़ा आया जो कि देवताओं के वास्तुकार विश्वकर्मा थे. उन्होंने अपना परिचय नहीं दिया लेकिन कहा कि मैं यह मूर्ति बना दूंगा लेकिन शर्त ये है कि 21 दिनों तक कोई उसे भवन में प्रवेश नहीं करेगा, जिसमें मैं यह मूर्तियां बनाऊंगा लेकिन राजा ने उत्सुकता वश कुछ दिन पहले ही वह दरवाजा खोल दिया और उन्हें वहां बिना हाथ पैर की अधूरी मूर्तियां मिली, लेकिन शिल्पी नहीं तब भगवान ने राजा को सपने में दर्शन दिए कि मुझे ऐसे ही स्थापित करो।
अब भगवान जगन्नाथ की प्राण प्रतिष्ठा के लिए किसको बुलाया जाए इस पर विचार चल रहा था तभी नारद जी वहां पहुंचे और उन्होंने कहा कि भगवान जगन्नाथ की स्थापना कोई विशिष्ट व्यक्ति ही कर सकता है, स्वयं ब्रह्मा जी ही इसकी स्थापना कर सकते हैं ब्रह्मा जी से आज्ञा लेने के लिए राजा इंद्रद्युम्न नारद जी के साथ ब्रह्मलोक की तरफ चले गए।
उनके जाने के बाद रानी गुंडिचा ने कहा कि जब मेरे पति यहां नहीं हैं तो मैं भी तप में लीन हो जाती हूं और वह गुंडिचा मंदिर में एक गुंडिचा मंदिर में एक गुफा में तप में लीन हो गई. जाने से पहले उन्होंने भगवान जगन्नाथ से वचन लिया कि आप मुझसे मिलने जरूर आइएगा. कहा जाता है यह वही प्रक्रिया है जो आज तक चल रही है. भगवान जगन्नाथ माता गुंडिचा से मिलने हर साल जाते हैं।
क्या है गुंडिचा मार्जन ?
कहा जाता है की हर साल भगवान जगन्नाथ के गुंडिचा मंदिर पहुंचने से एक दिन पहले मंदिर की साफ सफाई का कार्यक्रम किया जाता है. इस अनुष्ठान को गुंडिचा मार्जिन के नाम से जाना जाता है. यह भगवान के स्वागत की तैयारी है, जिसे हर साल मंदिर को शुद्ध करके किया जाता है।
गुंडिचा माता कौन से पकवानों से करती हैं भगवान का स्वागत ?
भगवान जगन्नाथ जब अपनी मौसी माता गुंडिचा के पास पहुंचते हैं तो माता गुंडिचा माता उन्हें कई तरह के पकवानों को खिलाती हैं. जिसमें कि खासकर पिठादो और रसगुल्ला शामिल है. माना जाता है कि आज भी भगवान इस पिठादो और रसगुल्ला को खाकर बहुत प्रसन्न होते हैं. हर साल भगवान के पहुंचने पर इस मंदिर में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं और भगवान जगन्नाथ का स्वागत किया जाता है।