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National : अब बनेंगी कार्बन डाइऑक्साइड सोखने वाली दीवारें, जलवायु संकट से निपटेंगी

Anuj Kumar
Anuj Kumar
National : अब बनेंगी कार्बन डाइऑक्साइड सोखने वाली दीवारें, जलवायु संकट से निपटेंगी

नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन को लेकर स्विट्ज़रलैंड से एक उत्साहजनक खबर मिली है। वहां के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी सामग्री तैयार की है, जो न केवल हवा से कार्बन डाइऑक्साइड (Co2)को सोख सकती है, बल्कि उसे एक ठोस और मजबूत निर्माण खनिज में बदलकर उसका इस्तेमाल इमारतें बनाने में किया जा सकता है। यह अद्भुत खोज एक अनूठा उदाहरण है, जिसमें नील-हरित शैवाल यानी सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) की अहम भूमिका है। मीडिया रिपोर्ट (Media Report)के मुताबिक सायनोबैक्टीरिया एक प्रकार के माइक्रोऑर्गेनिज़्म हैं, जो प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से ऊर्जा उत्पन्न करते हैं।

कार्बन डाइऑक्साइड को सोखकर उसे ऑक्सीजन और शर्करा में बदल देते हैं

यह जीवाणु हवा से कार्बन डाइऑक्साइड को सोखकर उसे ऑक्सीजन और शर्करा में बदल देते हैं। जब इन्हें कुछ विशेष पोषक तत्वों के साथ मिलाया जाता है, तो ये कार्बन डाइऑक्साइड को ठोस खनिजों जैसे चूना पत्थर में बदल देते हैं। यही प्रक्रिया वैज्ञानिकों ने एक खास 3डी प्रिंटेबल हाइड्रोजेल के जरिए नियंत्रित की है। हाइड्रोजेल एक जेल जैसा पदार्थ है जिसमें पानी की मात्रा ज्यादा होती है और उसमें छिद्र बनाकर प्रकाश, सीओ2 और नमी को अंदर प्रवेश करने की अनुमति दी गई है, जिससे शैवाल जीवित रहकर सक्रिय रूप से काम कर सकें। इसकी सबसे खास बात यह है कि यह न सिर्फ पर्यावरण के लिए अनुकूल है, बल्कि संरचनात्मक रूप से भी मजबूत है।

26 मिलीग्राम कार्बन डाइऑक्साइड को ठोस रूप में संग्रहित किया

सायनोबैक्टीरिया जैसे-जैसे बढ़ते हैं, वे कार्बन डाइऑक्साइड को बायोमास के रूप में अपने अंदर जमा करते हैं और खनिज के रूप में दीवारों को मजबूत बनाते हैं। अध्ययन के मुताबिक यह सामग्री लगातार 400 दिनों तक कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने में सक्षम रही और प्रति ग्राम करीब 26 मिलीग्राम कार्बन डाइऑक्साइड को ठोस रूप में संग्रहित किया। यह दर अन्य जैविक तरीकों की तुलना में कहीं ज्यादा प्रभावशाली मानी जा रही है। अध्ययन में बताया है कि 30 दिनों के बाद सायनोबैक्टीरिया की वृद्धि धीमी हो जाती है, फिर भी कार्बन डाइऑक्साइड का खनिजीकरण जारी रहता है।

औसतन 20 साल पुराने देवदार के पेड़ के बराबर है

वैज्ञानिकों ने इस निर्माण सामग्री का प्रयोग इटली के वेनिस शहर में आयोजित एक आर्किटेक्चर प्रदर्शनी में किया, जहां उन्होंने इससे पेड़ के तनों जैसी संरचनाएं बनाई। उनका मानना है कि इन संरचनाओं में सालाना करीब 18 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड सोखने की क्षमता है, जो कि एक औसतन 20 साल पुराने देवदार के पेड़ के बराबर है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यदि शहरी भवनों में इस सामग्री का इस्तेमाल किया जाए, तो यह वातावरण से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड हटाकर जलवायु परिवर्तन की चुनौती को कम कर सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि सायनोबैक्टीरिया को जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा और अधिक कार्यक्षम बनाया जाए, तो यह तकनीक और भी प्रभावशाली हो सकती है। साथ ही, इसमें उपयोग होने वाले पोषक तत्वों की आपूर्ति को लंबे समय तक बनाए रखने की दिशा में भी शोध जारी है।

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