नई दिल्ली। आप नेता अरविंद केजरीवाल (Arbind Kejriwal) और जनसुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर राजनीति में एक ही राह पर हैं। दोनों की राजनीतिक गतिविधियों को देखकर लगता है, दोनों ने इलाका अलग-अलग चुना है। अरविंद केजरीवाल गुजरात में सक्रिय हैं, तो प्रशांत बिहार में जन सुराज मुहिम चला रहे हैं। केजरीवाल और प्रशांत में एक और कॉमन बात है, दोनों ही बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। केजरीवाल ने अभी गुजरात में आम आदमी पार्टी (Aaam Aadmi Party) के चुनावी एक्शन प्लान के बारे में कुछ नहीं बताया। अपनी सरकार बनाने का दावा तो हर पार्टी चुनावों में करती है, प्रशांत भी कर रहे हैं।
2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में ही ऐसा दावा कर चुके हैं
केजरीवाल तो 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में ही ऐसा दावा कर चुके हैं। केजरीवाल और प्रशांत दोनों ने बीते उपचुनावों में अपनी अहमियत तो दर्ज कराई दी है और इसलिए उनके दावों को सीधे सीधे खारिज भी नहीं किया जा सकता है। अरविंद केजरीवाल ने तो अभी गुजरात के विसावदर उपचुनाव में आम आदमी पार्टी को जीत दिलाई और 2024 में बिहार की चार विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में जन सुराज पार्टी (Jan Suraj Party) को पहली बार में ही 10 फीसदी वोट दिलाकर प्रशांत ने भी सबका ध्यान खींचा है।
विसावदर और लुधियाना वेस्ट की जीत ने केजरीवाल में जोश भर दिया है
गुजरात की विसावदर सीट और पंजाब की लुधियाना वेस्ट सीट पर उपचुनाव उस दौर में हुआ, जब केजरीवाल दिल्ली चुनाव में पार्टी की हार से अंदर तक हिल चुके थे। शायद दिल्ली शराब घोटाले में जेल भेजे जाने से भी ये बड़ा झटका था, लेकिन केजरीवाल ने आगे का सफर ऐसे प्लान किया जैसे गूगल मैप गलत टर्न ले लेने पर री-रूट करने के बाद नया रास्ता बना देता है और नया रास्ता केजरीवाल को उस पड़ाव तक तो पहुंचा ही दिया, जहां वह पहुंचना चाहते थे। विसावदर और लुधियाना वेस्ट की जीत ने केजरीवाल में जोश भर दिया है और वह उत्साह के साथ गुजरात के चुनावी मैदान में कूद चुके हैं, जबकि चुनाव में अभी दो साल बाकी हैं। सवाल है कि आने वाले गुजरात चुनाव में केजरीवाल को क्या हासिल होने वाला है? विसावदर की जीत, ऐसी बातें समझने का आधार तो हो सकती है, लेकिन मॉडल नहीं।
गुजरात में केजरीवाल का रोल तो वोटकटवा जैसा ही है
विसावदर में जाहिर है, आप ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों को शिकस्त दी है, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि उन्हीं मानदंडों की मिसाल है, जो अरविंद केजरीवाल की कामयाबी का फॉर्मूला है। बता दें विसावदर भी आम आदमी पार्टी से पहले कांग्रेस के हिस्से में ही थी। बीजेपी तो जीत के लिए पहले से ही जूझ रही है। गुजरात में केजरीवाल का रोल तो वोटकटवा जैसा ही है, और बिहार में वैसा ही प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी करने वाली है। गुजरात में तो साफ है कि केजरीवाल कांग्रेस का ही वोट काटेंगे और बीजेपी को उसका फायदा मिलेगा।
प्रशांत के उम्मीदवार नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को भी नुकसान पहुंचाएंगे
नए सिरे से देखें तो जो व्यवहार दिल्ली में कांग्रेस ने आपप के साथ किया, बिल्कुल वैसा ही और फायदा बीजेपी को मिलना तय है, जिस रास्ते प्रशांत किशोर का कैंपेन चल रहा है, उससे तो यही लगता है कि आरजेडी और कांग्रेस के साथ-साथ प्रशांत के उम्मीदवार नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को भी नुकसान पहुंचाएंगे। जैसे 2020 में चिराग पासवान ने डैमेज किया था। चिराग का निशाना साफ नजर आ रहा था, प्रशांत का छिपा हुआ एजेंडा है। ऊपर से चिराग और प्रशांत दोनों ही एक-दूसरे की जमकर तारीफ भी कर रहे हैं। कुछ न कुछ तो अंदर ही अंदर पक रहा है।
अरविंद केजरीवाल आईएएस है या आईपीएस?
अरविंद केजरीवाल सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 1995 में सहायक आयकर आयुक्त के रूप में भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में शामिल हुए।
केजरीवाल से पहले दिल्ली के सीएम कौन थे?
सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की शीला दीक्षित पंद्रह साल से ज़्यादा समय तक इस पद पर रहीं। 28 दिसंबर 2013 को, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के पहले राज्य स्तरीय पार्टी मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
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