राजस्थान के छिंदवाड़ा (Chhindwara) में एक बड़ा हादसा हो गया, जहां साधुओं से भरी एक कार अनियंत्रित होकर बिना मुंडेर के कुएं में जा गिरी. इस घटना में 4 साधुओं की मौत हो गई. कार में 7 साधु सवार थे, जिनमें से तीन साधुओं को गांव वालों ने बचा लिया. हादसे में घायल साधुओं को अस्पताल में भर्ती कराया गया है. ये घटना शुक्रवार शाम को हुई, जब कार सवार मध्य प्रदेश के बैतूल से चित्रकूट लौट रहे थे।
Chhindwara :बताया जा रहा है कि कार सवार धार्मिक अनुष्ठान की यात्रा करने के लिए निकले थे. वह बैतूल के बालाजीपुरम धाम में दर्शन करने के लिए गए थे. दर्शन करने के बाद जब वह वापस लौट रहे थे. तभी टेमनी खुर्द के पास नेशनल हाईवे पर अचानक उनकी (car) कार का टायर फट गया और ड्राइवर का कार से कंट्रोल हट गया. ऐसे में कार बेकाबू हुई और पेड़ से टकराते हुए हाईवे किनारे बने एक कुएं में जा गिरी. इसके बाद आसपास मौजूद लोगों ने पुलिस को घटना की जानकारी की।
साधुओं को अस्पताल में भर्ती कराया
हादसे की जानकारी मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची. फिर जेसीबी और क्रेन की मदद से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया. इस हादसे के बाद मौके पर लोगों की भीड़ जमा हो गई. हाईवे पर कुछ देर के लिए जाम जैसी स्थिति पैदा हो गई. हालांकि, पुलिस ने मौके पर पहुंचकर ग्रामीणों की मदद से पहले कार से साधुओं को बाहर निकाला और घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया।
मृतक साधुओं की हो गई पहचान
घायल साधुओं में छिंदी के बेटे राकेश गिरी, मुंशी गिरी के बेटे शिवपूजन गिरी, शिवपूजन गिरी के बेटे मार्तण्ड गिरी शामिल हैं. वहीं हादसे में जिन साधुओं की जान गई. उनकी पहचान गिरधारी के बेटे राकेश गिरी, मेवा के बेटे मलखान गिरी, नत्थू के बेटे गुलाब गिरी और कल्लू उर्फ लक्ष्मी गिरी के रूप में हुई है. इस हादसे को लेकर छिंदवाड़ा के सांसद विवेक बंटी साहू ने दुख जाहिर किया. उन्होंने डॉक्टरों को उचित इलाज के निर्देश दिए हैं।
छिंदवाड़ा जिला किस लिए प्रसिद्ध है?
और ये प्रदेश का 5वा सबसे विकसित शहर है एवं छिंदवाड़ा Chhindwara मे राज्य का पहला जनजंतीय संग्रहालय है छिंदवाड़ा में 20 अप्रैल 1954 को प्रारंभ हुए जनजातीय संग्रहालय को वर्ष 1975 में ‘राज्य संग्रहालय’ का दर्जा प्राप्त हुआ तथा 8 सितम्बर 1997 को जनजातीय संग्रहालय का नाम बदलकर “श्री बादल भोई राज्य जनजातीय संग्रहालय” कर दिया गया।
छिंदवाड़ा का इतिहास क्या है?
“छिंद” (खजूर जैसा दिखने वाला एक मीठा फल) के पेड़ों की प्रचुरता के कारण, वहाँ छिंद नाम का एक छोटा सा गाँव था, जहाँ अयोध्या-फैज़ाबाद (उत्तर प्रदेश) से आए एक हाथी व्यापारी रतन रघुवंशी ने छिंद के लिए एक बाड़ा बनाया था। . वहां भवन का निर्माण कराया गया, तभी से यह स्थान ग्राम छिंदवाड़ा के नाम से जाना जाने लगा।
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