नई दिल्ली । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि देश में जितना विरोध संघ का हुआ है, उतना किसी अन्य संगठन का नहीं हुआ। बावजूद इसके स्वयंसेवकों के मन में समाज के प्रति सात्विक प्रेम बना रहा, जिसकी वजह से विरोध की धार अब धीरे-धीरे कम हो गई है।
आत्मनिर्भरता और स्वदेशी पर जोर
अमेरिकी टैरिफ विवाद (US tariff dispute) के बीच भागवत ने स्वदेशी की राह पर चलने का संदेश दिया। उन्होंने कहा – स्वदेशी का मतलब विदेशों से संबंध तोड़ना नहीं है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार तो चलता रहेगा, लेन-देन भी होगा, लेकिन यह किसी दबाव में नहीं होगा।”
समाज को दिया संदेश
स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि नेक लोगों से मित्रता करें और जो समाज के लिए अच्छा काम नहीं करते, उन्हें नजरअंदाज करें। उन्होंने यह भी कहा कि विरोधियों के अच्छे कार्यों की सराहना करनी चाहिए और गलत करने वालों के प्रति क्रूरता नहीं, बल्कि करुणा (Karuna) दिखानी चाहिए।
संघ की कार्यप्रणाली
भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ में किसी प्रकार का प्रोत्साहन या इंसेंटिव नहीं है। उन्होंने कहा –
“लोग पूछते हैं कि संघ में आकर क्या मिलेगा? तो हम कहते हैं – कुछ नहीं मिलेगा, बल्कि जो है वह भी चला जाएगा। यहां सिर्फ हिम्मत वालों का काम है। फिर भी स्वयंसेवक जुड़े रहते हैं क्योंकि समाज की निस्वार्थ सेवा के बाद जो संतोष और आनंद मिलता है, वह अद्वितीय है।”
हिंदुत्व पर विचार
हिंदुत्व की परिभाषा पर बोलते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत का लक्ष्य विश्व कल्याण है।
उन्होंने कहा – स्वयंसेवक जानता है कि हम हिंदू राष्ट्र के जीवन मिशन के विकास की दिशा में काम कर रहे हैं। हिंदुत्व, हिंदूपन और हिंदू की विचारधारा का उत्तर सत्य और प्रेम है। दुनिया अपनेपन से चलती है।”
मोहन भागवत से पहले संघ प्रमुख कौन थे?
1925 में संगठन की स्थापना के बाद से छह लोगों ने सरसंघचालक के रूप में कार्य किया है। पहले, केशव बलिराम हेडगेवार ने संगठन की स्थापना की और 1925-1930 तक और फिर 1931-1940 तक सरसंघचालक के रूप में कार्य किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत हैं।
मोहन भागवत जी के कितने बच्चे थे?
वे अविवाहित हैं तथा उन्होंने भारत और विदेशों में व्यापक भ्रमण किया है। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख चुने जाने वाले सबसे कम आयु के व्यक्तियों में से एक हैं। उन्हें एक स्पष्टवादी, व्यावहारिक और दलगत राजनीति से संघ को दूर रखने के एक स्पष्ट दृष्टिकोण के लिये जाना जाता है।
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