Agra : ताजमहल के मुख्य गुंबद में रिसाव, मरम्मत शुरू

By Ankit Jaiswal | Updated: June 7, 2025 • 11:46 AM

84 साल पहले 1941 में ताजमहल के गुंबद के रिसने पर किया गया था संरक्षण

दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल में बीते साल भारी बारिश से मुख्य गुंबद के रिसने पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने मरम्मत का काम शुरू कर दिया है। गुंबद पर पाड़ लगाकर कलश के नीचे लगे पत्थरों की मरम्मत की जाएगी, जहां से पानी रिसकर नीचे आया। 84 साल पहले 1941 में गुंबद के रिसने पर संरक्षण किया गया था। हालांकि ताज में मुख्य गुंबद के रिसाव का इतिहास 373 साल पुराना है। वर्ष 1652 में शहजादा औरंगजेब ने बादशाह शाहजहां को ताजमहल का गुंबद रिसने की पहली रिपोर्ट भेजी थी।

मुख्य गुंबद पर लगे कलश के पास से हो गया था पानी का रिसाव

सितंबर, 2024 में भारी बारिश के कारण ताज के मुख्य गुंबद पर लगे कलश के पास से पानी का रिसाव हो गया था। एएसआई ने लिडार और थर्मल स्कैनिंग के जरिए पाया कि कलश के पास जोड़ और दरार से रिसाव हुआ है। ड्रोन से वह जगह देखी गई, जहां से पानी नीचे आया। इसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने मुख्य गुंबद की मरम्मत और कलश के पास पहुंचने के लिए पाड़ लगाई है, जिसके बाद मरम्मत का काम शुरू किया गया है। इस पर 76 लाख रुपये खर्च होंगे।

32 फीट ऊंचे कलश तक पहुंचना चुनौती भरा

ताजमहल के गुंबद पर लगे 32 फीट ऊंचे कलश तक पहुंचना चुनौती भरा है। पूर्व में गुंबद पर संगमरमर के पत्थरों के बीच मसाला भरने का काम झूले पर लटक कर कराया गया था, लेकिन संरक्षण का काम पाड़ के साथ ही हो पाएगा। तेज हवा, गर्मी और गुंबद की ऊंचाई पर कारीगरों का काम करना मुश्किल भरा है। इससे पहले वर्ष 1941 में पाड़ लगाकर मुख्य गुंबद की मरम्मत कराई गई थी। तब मीनारें और रॉयल गेट पर भी काम किया गया था। ताजमहल के वरिष्ठ संरक्षण सहायक प्रिंस वाजपेयी ने बताया कि मरम्मत के लिए पाड़ लगा दी गई है। 6 माह का समय मरम्मत में लगेगा। गुंबद में संरक्षण से जुड़ी जो दिक्कतें नजर आएंगी, उन्हें साथ-साथ दुरुस्त किया जाएगा।

मुख्य गुंबद में पहली बार वर्ष 1652 में हुआ रिसाव

ताजमहल के मुख्य Dome में पहली बार वर्ष 1652 में रिसाव हुआ। मुगल शहजादे औरंगजेब ने 4 दिसंबर, 1652 में अपने निरीक्षण में यह रिसाव देखा था। इसमें मुख्य मकबरे के Dome से बारिश में उत्तर की ओर दो जगह से पानी टपकने का जिक्र किया गया था। रिपोर्ट में ताजमहल के चार मेहराबदार द्वार, दूसरी मंजिल की दीर्घाएं, चार छोटे Dome, चार उत्तरी बरामदे और सात मेहराबदार भूमिगत कक्षों में भी नमी की जानकारी दी गई। उसके बाद Dome की मरम्मत की गई थी। ब्रिटिश काल में पहली बार वर्ष 1872 में एक्जीक्यूटिव इंजीनियर जे डब्ल्यू एलेक्जेंडर ने मुख्य Dome से पानी रिसने पर मरम्मत कराई।

84 साल पहले 92 हजार में हुई थी मरम्मत

पूर्व वरिष्ठ संरक्षण सहायक डॉ. आरके दीक्षित ने बताया कि ब्रिटिश काल में ताज के राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए विशेषज्ञों की समिति बनाई गई थी। समिति की रिपोर्ट पर वर्ष 1941 में मरम्मत शुरू की गई थी। Dome पर तब 3 साल तक काम चला और 92 हजार रुपये खर्च हुए। Dome को जलरोधी बनाने के लिए उभरे हुए पत्थरों को हाइड्रोलिक चूने की मदद से फिर से लगाया गया। कई पत्थर बदले गए। इनके जोड़ों को विशेष चूने से भरा गया। इसकी पूरी ड्राइंग तैयार की गई।

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