मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने असम के लोगों को बिहू उत्सव को समाप्त करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि अब इस उत्सव के मौसम को समाप्त करने का समय आ गया है।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य में चल रहे बिहू उत्सव समारोह को समाप्त करने की अपील की है। उन्होंने पिछले एक महीने में आयोजित विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लोगों की उत्साही भागीदारी और योगदान के लिए सभी को धन्यवाद दिया। बता दें कि बिहू असम में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो मुख्य रूप से कृषि से जुड़ा हुआ है।
मुख्यमंत्री ने कहा, “पिछले एक महीने में हमने असम में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से खुशी-खुशी बिहू मनाया। मैं सभी के उत्साही भागीदारी और योगदान के लिए ईमानदारी से धन्यवाद देता हूं। हालांकि, अब इस उत्सव के मौसम को समाप्त करने का समय आ गया है।” उन्होंने विनम्रतापूर्वक अपील की है कि 10 मई से आगे के सभी बिहू कार्यक्रमों को रद्द कर दिया जाए। मुख्यमंत्री ने कहा, “आइए, हम इस जीवंत उत्सव को उसी एकता और भावना के साथ एक गरिमापूर्ण समापन तक ले जाएं, जिसमें इसे मनाया गया था।”
साल में तीन बार क्यों मनाया जाता है यह त्योहार?
यह वसंत ऋतु में आमतौर पर अप्रैल के मध्य में मनाया जाता है। यह असमिया नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है और फसल बोने का समय होता है। इस दौरान लोग पारंपरिक नृत्य और संगीत यानी बिहू गीत में भाग लेते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। यह बिहू युवाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह प्रेम और दोस्ती का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान ‘हुचरी’ नामक एक विशेष प्रकार का लोक गीत और नृत्य भी किया जाता है, जिसमें लोग समूहों में घरों-घरों जाकर आशीर्वाद देते हैं।
- काती बिहू या कोंगाली बिहू: यह शरद ऋतु में आमतौर पर अक्टूबर के मध्य में मनाया जाता है।
- यह फसल की बुआई पूरी होने और धान के पौधों के बढ़ने की अवधि का प्रतीक है।
- इस बिहू में भव्य उत्सव नहीं होता, बल्कि यह अधिक संयमित और प्रार्थनापूर्ण होता है।
- इस दिन लोग तुलसी के पौधे के पास और धान के खेतों में मिट्टी के दीपक (साकी) जलाते हैं और अच्छी फसल की कामना करते हैं, इसलिए इसे ‘कोंगाली’ यानी ‘गरीब’ बिहू भी कहा जाता है, क्योंकि इस समय तक पिछले फसल का भंडार कम होने लगता है।
माघ बिहू या भोगाली बिहू: यह सर्दियों में आमतौर पर जनवरी के मध्य में मनाया जाता है। यह फसल कटाई के अंत का प्रतीक है और भरपूर भोजन और आनंद का त्योहार है। ‘भोगाली’ शब्द का अर्थ ही भोग या आनंद है। इस दौरान लोग ‘भेलाघर’ नामक अस्थायी झोपड़ियां बनाते हैं और सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं। रात में अलाव जलाया जाता है और पारंपरिक खेलकूद होते हैं। सुबह स्नान के बाद भेलाघर को जलाया जाता है और अग्नि देवता को प्रार्थना अर्पित की जाती है। इस बिहू में विभिन्न प्रकार के पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।
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