इंडिया एक ऐसा देश है जो अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के लिए मशहूर है। यहां हजारों देवालय हैं, लेकिन केरल का अट्टुकल भगवती देवालय अपनी खास परंपराओं के लिए अनूठा स्थान रखता है। इस देवालय में केवल महिलाओं को पूजा करने का अधिकार है और पुरुषों की एंट्री पूरी तरह प्रतिबंधित है।
अट्टुकल मंदिर का इतिहास और मान्यता
अट्टुकल देवालय की स्थापना एक पौराणिक हादसा से जुड़ी है। कहा जाता है कि एक दिन किल्ली नदी के किनारे एक व्यक्ति स्नान कर रहा था, तभी एक छोटी लड़की ने उससे नदी पार कराने को कहा। लड़की के तेज से प्रभावित होकर वह उसे अपने निलय ले गया, लेकिन अचानक वह लड़की गायब हो गई। उसी रात व्यक्ति को सपना आया कि वह लड़की देवी भद्रकाली थीं और उन्होंने देवालय बनाने का निर्देश दिया।
सुबह व्यक्ति ने निर्देशित स्थान पर जाकर तीन दिव्य रेखाएं देखीं और वहीं मंदिर की स्थापना की गई। आज भी इस स्थान को अत्यंत पवित्र माना जाता है।
अट्टुकल पोंगला उत्सव: गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज
अट्टुकल देवालय का सबसे प्रसिद्ध उत्सव अट्टुकल पोंगला है। यह दस दिन चलने वाला पर्व है, जिसमें लाखों महिलाएं भाग लेती हैं। महिलाएं मंदिर के प्रांगण से लेकर आसपास की सड़कों तक एकत्र होकर देवी को मीठे चावल (पोंगला) चढ़ाती हैं।
इस आयोजन को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी ‘सबसे बड़ी महिला धार्मिक सभा’ के रूप में दर्ज किया गया है, जो इस देवालय की विशेषता को और भी खास बनाता है।
वास्तुकला और देवी की मूर्ति
अट्टुकल देवालय की वास्तुकला में केरल और तमिलनाडु की शैलियों का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है। देवालय के मुख्य द्वार और दीवारों पर देवी के विभिन्न स्वरूप जैसे महिषासुरमर्दिनी, काली, शिव-पार्वती आदि की भव्य नक्काशियाँ उकेरी गई हैं।
देवालय परिसर में गणेश जी, नाग देवता और शिव जी की भी मूर्तियां स्थापित हैं। देवी की दो मूर्तियां हैं. एक प्राचीन और एक नवीन, जिनमें मूल मूर्ति विशेष रूप से आदरणीय है।