भगवान श्रीराम के कार्य: भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान जहां-जहां भी रुकना, वहां पर्णकुटी बनाकर निलय किया। सबसे पहले उन्होंने चित्रकूट में ऋषि भारद्वाज के सुझाव पर पर्णकुटी बनाई। इसके बाद नासिक के पंचवटी में भी उन्होंने पर्णकुटी बनाई। श्रीराम ने स्थानिकवासी और अरण्यवासी को भी पर्णकुटी बनावट और उसमें रहने की कला सिखाई।
पोशाक निर्माण और थामना
वनवास के समय श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता ने पीले वस्त्र और खड़ाऊं थामना किए। माता सीता को अनुसूइया द्वारा दी गई अतिसुंदर साड़ी प्राप्त थी। श्रीराम ने खुद पोशाक प्रणयन की कला सीखी और अन्य अरण्यवासीयों को भी यह कला-कौशल सिखाई, ताकि वे आत्मश्रयी बन सकें।
शिवलिंग स्थापना और देवालय निर्माण

रामायण के अनुसार, श्रीराम ने रामेश्वरम में भगवान शिव का आराधना किया और वहां स्वयं शिवलिंग स्थापित किया। यात्रा मार्ग में कई जगहें पर भी उन्होंने शिवलिंग स्थापित कर देवस्थान की नींव रखी, जिससे धार्मिक संस्कृति का फैलाव हुआ।
कुंड और कंदराएँ का निर्माण
श्रीराम ने वृष्टि जल संचयन के लिए कई जलाशय का निर्माण करवाया, जो आज भी “सीता कुंड” के नाम से प्रसिद्ध हैं। चित्रकूट और नासिक क्षेत्र में उन्होंने बरसात से बचने के लिए कंदराएँ का भी निर्माण किया था।

भगवान श्रीराम के कार्य: रामसेतु का निर्माण
लंका जाने के मार्ग में समुद्र पार करने के लिए श्रीराम ने नल और नील के सहकार से रामसेतु का निर्माण करवाया। यह संसार का पहला समुद्र पर बनाया गया सेतु माना जाता है।
भगवान श्रीराम के कार्य: तीर-कमान और कृषि सीख
वनवास के समय भगवान श्रीराम ने अरण्यवासीयों और मूल निवासी को तीर-कमान बनाना और चलाना सिखाया। इसके साथ ही उन्होंने कृषि कार्यों की भी सीख दी, जिससे ग्रामीण समुदाय आत्मनिर्भर बन सके।