बांदा (उत्तर प्रदेश), 9 सितंबर 2025 – उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में घटी एक दिल दहला देने वाली वारदात ने पूरे देश को झकझोर दिया। एक तीन साल की मासूम बच्ची के साथ पड़ोसी ने पहले दुष्कर्म किया और फिर उसकी हत्या कर दी। समाज में गुस्से और आक्रोश की लहर इतनी तीव्र थी कि अदालत ने केवल 58 दिनों के भीतर इस मामले का फैसला सुनाते हुए आरोपी को मौत की सजा दे दी।
घटना कैसे हुई?
जून 2025 की एक रात, बांदा (Banda) के एक छोटे से गांव में मासूम बच्ची अपने घर के बाहर खेल रही थी। उसी दौरान पड़ोसी सुनील निषाद (Sunil Nishad) ने उसे टॉफी का लालच दिया और अपने साथ ले गया। जब बच्ची घर नहीं लौटी तो परिवार ने तलाश शुरू की और पुलिस को सूचना दी।
कुछ घंटों की खोजबीन के बाद बच्ची जंगल में एक आइस बॉक्स में बंद हालत में मिली। वह गंभीर रूप से घायल थी और बेहोशी की हालत में थी। परिजन उसे तुरंत अस्पताल लेकर पहुंचे और बाद में उसे कानपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया। लेकिन इलाज के दौरान बच्ची ने दम तोड़ दिया।
आरोपी और सबूत
पुलिस की जांच में साफ हुआ कि आरोपी सुनील निषाद ने ही मासूम का अपहरण किया था। बच्ची के कपड़े और डीएनए रिपोर्ट ने अपराध की पुष्टि की। सुनील के घर से कई अहम सबूत मिले। गांव वालों के गुस्से और परिवार के बयान ने केस को और मज़बूत कर दिया।
तेज़ सुनवाई और अदालत का फैसला
यह केस फास्ट-ट्रैक कोर्ट में चला। कुल 11 गवाह पेश किए गए और मेडिकल रिपोर्ट सहित सारे सबूत अदालत में रखे गए।
विशेष POCSO जज प्रदीप कुमार मिश्रा ने इसे “rarest of rare” श्रेणी का अपराध करार दिया। उन्होंने कहा – “यह अपराध केवल एक बच्ची के साथ नहीं, बल्कि पूरे समाज की अंतरात्मा पर हमला है।”
फैसला सुनाते हुए अदालत ने आरोपी सुनील निषाद को मौत की सजा दी और कहा कि वह “तब तक फांसी पर लटकाया जाएगा जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए।”
सरकारी कार्रवाई
घटना के तुरंत बाद सरकार और प्रशासन ने कड़ा रुख अपनाया। आरोपी का घर बुलडोज़र से ढहा दिया गया। पुलिस ने फास्ट-ट्रैक जांच पूरी की और अदालत में केस मज़बूती से रखा।
समाज की प्रतिक्रिया
इस घटना ने पूरे जिले और राज्य को हिला दिया। गुस्से में लोग लगातार सख्त सजा की मांग कर रहे थे। अदालत का फैसला आने के बाद पीड़ित परिवार ने राहत की सांस ली और कहा – “हमें इंसाफ मिला है।”
गांव वालों का कहना था कि ऐसी सजा बाकी अपराधियों के लिए सबक बनेगी।बांदा की यह घटना सिर्फ एक बच्ची की त्रासदी नहीं, बल्कि समाज के लिए एक चेतावनी है। यह बताती है कि मासूमों की सुरक्षा के लिए परिवार, समाज और शासन सबको मिलकर जिम्मेदारी उठानी होगी।
तेज़ सुनवाई और सख्त सजा ने साबित किया कि न्यायपालिका अब ऐसे मामलों में देर नहीं कर रही। लेकिन सवाल यह भी है कि कब तक हमारी मासूम बेटियां इस तरह की दरिंदगी का शिकार होती रहेंगी?
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