कच्चे माल की कमी से प्रभावित उत्पादन
नई दिल्ली: गौतम अडानी(Gautam Adani) का कच्छ कॉपर स्मेल्टर इस समय गंभीर कच्चा माल संकट से जूझ रहा है। करीब 1.2 अरब डॉलर की लागत से बने इस प्लांट की क्षमता 5 लाख टन है, लेकिन वैश्विक सप्लाई में आई कमी के कारण इसे अपेक्षित कॉपर कन्सेंट्रेट नहीं मिल पा रहा। जून 2024 में उत्पादन शुरू करने के बाद से प्लांट को आवश्यक कच्चे माल का दसवां हिस्सा भी उपलब्ध नहीं हो सका है। कस्टम डेटा से यह भी सामने आया कि तांबे की कमी ने स्मेल्टर को पूरी क्षमता पर चलाना लगभग असंभव बना दिया है।
अक्टूबर(October) तक कंपनी केवल 1.47 लाख टन कॉपर(copper) कन्सेंट्रेट ही आयात कर सकी, जबकि उसी अवधि में हिंडाल्को ने 10 लाख टन से ज्यादा खरीद लिया। रिपोर्ट बताती है कि प्लांट को पूरी क्षमता पर चलाने के लिए लगभग 1.6 मिलियन टन कन्सेंट्रेट की जरूरत है। वैश्विक खदानों में आई रुकावटों ने सप्लाई को और कमजोर किया है, जिसके कारण स्मेल्टरों को कच्चा माल मिलने में कठिनाई बढ़ रही है।
वैश्विक संकट और स्मेल्टरों पर असर
फ्रीपोर्ट-मैकमोरन, हडबे मिनरल्स, इवानहो माइंस और चिली की सरकारी कंपनी कोडेलको जैसी प्रमुख खदानों में उत्पादन संबंधी दिक्कतों ने वैश्विक सप्लाई चेन को बाधित किया है। साथ ही चीन अपने स्मेल्टरों की क्षमता तेज़ी से बढ़ा रहा है, जिससे अन्य देशों के संयंत्रों की कमाई प्रभावित हुई है। परिणामस्वरूप ट्रीटमेंट और रिफाइनिंग चार्ज इस साल रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गए, जिससे कंपनियों को बहुत कम लाभ पर सामग्री स्वीकार करनी पड़ रही है।
कच्छ कॉपर अगले चार वर्षों में अपनी क्षमता को बढ़ाकर 1 मिलियन टन करने की योजना बना रहा है। हालांकि मौजूदा सप्लाई संकट के कारण संचालन लागत बढ़ेगी और प्लांट को पूरी क्षमता तक पहुंचने में अधिक समय लग सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार अडानी का नया प्लांट तकनीकी रूप से अधिक एफिशिएंट है, लेकिन शुरुआती चरण में घाटे में चलने की संभावना बनी हुई है।
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सप्लाई के स्रोत और भविष्य की चुनौतियाँ
कस्टम डेटा दर्शाता है कि बीएचपी ग्रुप ने प्लांट को 4,700 टन सप्लाई भेजी, जबकि अन्य खेप ग्लेंकोर और हडबे से आई हैं। धीमी शुरुआत यह संकेत देती है कि घरेलू धातु क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना भारत के लिए एक कठिन प्रक्रिया है। निर्माण, बिजली और इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्रों में मांग तेजी से बढ़ रही है, जबकि सप्लाई अभी भी सीमित है, जो उद्योग को तनाव में डाल रही है।
कच्चे माल की वैश्विक कमी का भारतीय स्मेल्टरों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
वैश्विक खदानों में रुकावटों के कारण सप्लाई सीमित हो रही है, जिससे भारतीय स्मेल्टरों को पर्याप्त कॉपर कन्सेंट्रेट नहीं मिल पा रहा। इससे उत्पादन क्षमता पर सीधा असर पड़ा है और लागत भी बढ़ी है। उद्योग विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे आने वाले महीनों में घरेलू उत्पादन और कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है।
कच्छ कॉपर प्लांट अपनी क्षमता कैसे बढ़ाने की योजना बना रहा है?
कंपनी अगले चार वर्षों में क्षमता को 1 मिलियन टन तक दोगुना करने पर काम कर रही है। तकनीकी दक्षता बढ़ाने और सप्लाई स्रोतों का विस्तार करने की रणनीति अपनाई जा रही है। हालांकि मौजूदा वैश्विक संकट के कारण इस योजना को समय और अधिक निवेश दोनों की आवश्यकता होगी।
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