Wholesale Inflation: थोक महंगाई में बड़ी राहत

By Dhanarekha | Updated: August 14, 2025 • 2:54 PM

थोक महंगाई 2 साल के निचले स्तर पर: जुलाई में (-)0.58%

नई दिल्ली: जुलाई महीने में थोक महंगाई (Wholesale Inflation) घटकर माइनस 0.58% पर आ गई है, जो पिछले 2 साल का सबसे निचला स्तर है। यह गिरावट मुख्य रूप से रोजमर्रा की जरूरत के सामानों और खाने-पीने की चीजों की कीमतों में कमी के कारण हुई है।

इससे पहले, जून 2025 में यह माइनस 0.13% थी, जबकि मई में यह 0.39% और अप्रैल में 0.85% थी। थोक महंगाई के तीन मुख्य हिस्से हैं: प्राइमरी आर्टिकल (22.62%), फ्यूल एंड पावर (13.15%) और मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट (64.23%)

खुदरा महंगाई भी 8 साल के निचले स्तर पर

थोक महंगाई(Wholesale Inflation) के साथ-साथ खुदरा महंगाई (CPI) में भी बड़ी गिरावट देखने को मिली है। जुलाई में यह घटकर 1.55% पर आ गई, जो पिछले 8 साल 1 महीने का सबसे निचला स्तर है।

इससे पहले जून 2017 में यह 1.54% थी। खुदरा महंगाई दर आम ग्राहकों द्वारा चुकाई जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है, जबकि थोक महंगाई कारोबारियों के बीच की कीमतों को दर्शाती है।

थोक महंगाई(Wholesale Inflation) का आम आदमी पर असर

थोक महंगाई(Wholesale Inflation) का सीधा असर आम आदमी पर तब पड़ता है जब यह लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर बनी रहती है। ऐसे में, उत्पादक (Producer) बढ़े हुए थोक मूल्यों का बोझ उपभोक्ताओं पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स में कटौती करके इसे नियंत्रित कर सकती है, जैसे कि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होने पर ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कम की जाती है।

थोक मुद्रास्फीति क्या होती है?

थोक महंगाई (Wholesale Inflation) उन कीमतों को मापती है जो एक थोक व्यापारी दूसरे थोक व्यापारी से वसूलता है। यह आम ग्राहकों द्वारा दी जाने वाली कीमतों पर आधारित नहीं होती, बल्कि यह थोक बाजार में होने वाले लेन-देन की कीमतों को दर्शाती है।

महंगाई कम होने का क्या कारण है?

थोक महंगाई(Wholesale Inflation) में कमी का मुख्य कारण रोजाना की जरूरत के सामानों और खाने-पीने की चीजों की कीमतों में गिरावट है। इसके अलावा, ईंधन और बिजली के दामों में स्थिरता ने भी महंगाई को कम करने में मदद की है।

इस महंगाई में कमी का आम आदमी पर क्या असर पड़ता है?

थोक महंगाई(Wholesale Inflation) में कमी का सीधा फायदा आम आदमी को तब मिलता है जब यह लंबे समय तक कम रहती है। इससे थोक बाजार में कीमतें कम होती हैं, जिसका असर खुदरा बाजार पर भी देखने को मिल सकता है।

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