अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) द्वारा 6 अगस्त 2025 को भारतीय वस्तुओं पर 25% अतिरिक्त टैरिफ और रूस से तेल खरीद के लिए 50% शुल्क लगाने की घोषणा के बाद भारत-अमेरिका (IND USA) संबंधों में तनाव बढ़ा है। इस व्यापारिक तकरार ने वैश्विक भू-राजनीति को प्रभावित किया है, जिसके परिणामस्वरूप भारत ने अपनी कूटनीतिक रणनीति को नए सिरे से मजबूत करने के लिए जापान और चीन की ओर रुख किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया जापान यात्रा (29 अगस्त 2025) और आगामी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के लिए चीन यात्रा (1 सितंबर 2025) के सियासी मायने गहरे और बहुआयामी हैं।
जापान दौरा और रणनीतिक साझेदारी:
मोदी की जापान यात्रा, जो उनकी आठवीं यात्रा थी, भारत-जापान विशेष रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने का प्रयास है। जापान के साथ भारत ने व्यापार, रक्षा, सेमीकंडक्टर, और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया। जापान द्वारा 10 ट्रिलियन येन के निवेश की घोषणा भारत के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है।
यह दौरा अमेरिका के टैरिफ दबाव के बीच भारत की वैकल्पिक आर्थिक और रणनीतिक साझेदारियों को मजबूत करने की रणनीति को दर्शाता है। जापान, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) का हिस्सा है, भारत के लिए एक विश्वसनीय साझेदार है, जो चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में मदद करता है।
चीन की ओर बढ़ता कदम:
अमेरिका के टैरिफ युद्ध ने भारत और चीन को अप्रत्याशित रूप से करीब लाया है। 2020 की गलवान घाटी झड़प के बाद भारत-चीन संबंध तनावपूर्ण थे, लेकिन हाल के महीनों में दोनों देशों ने संबंध सुधारने की दिशा में कदम उठाए हैं।
चीनी विदेश मंत्री वांग यी की अगस्त 2025 में भारत यात्रा और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की चीन यात्रा (दिसंबर 2024, जून 2025) ने सीमा विवाद सुलझाने और व्यापारिक सहयोग बढ़ाने की दिशा में सकारात्मक माहौल बनाया। लिपुलेख दर्रे के जरिए व्यापार पुनः शुरू करने की सहमति और ब्रिक्स सम्मेलन में साझा रुख दोनों देशों की नई दोस्ती का प्रतीक है।
सियासी मायने:
1. अमेरिका को कूटनीतिक जवाब: अमेरिका के टैरिफ ने भारत को आर्थिक नुकसान पहुंचाया, जिसके जवाब में भारत ने जापान और चीन जैसे साझेदारों के साथ संबंधों को मजबूत कर वैकल्पिक बाजार और निवेश के रास्ते तलाशे। यह अमेरिका को यह संदेश देता है कि भारत अपनी राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए स्वतंत्र विदेश नीति अपनाएगा।
2. चीन के साथ रणनीतिक संतुलन: भारत का चीन के साथ करीब आना स्थायी दोस्ती से अधिक रणनीतिक है। चीन की अर्थव्यवस्था मंदी से जूझ रही है, और भारत की 1.4 अरब की आबादी उसके लिए बड़ा बाजार है। भारत भी चीनी निवेश और रेयर अर्थ मेटल्स की आपूर्ति से लाभ उठाना चाहता है।
3. इंडो-पैसिफिक में संतुलन: जापान के साथ मजबूत साझेदारी और चीन के साथ सतर्क सहयोग भारत की इंडो-पैसिफिक रणनीति को संतुलित करता है। यह क्वाड के माध्यम से अमेरिका और जापान के साथ सहयोग को बनाए रखते हुए चीन के साथ तनाव को कम करने की कोशिश है।
4. वैश्विक मंचों पर प्रभाव: एससीओ और ब्रिक्स जैसे मंचों पर भारत और चीन का साझा रुख विकासशील देशों के हितों को बढ़ावा देता है, जो अमेरिका की एकतरफा नीतियों का विरोध करता है।
मोदी की जापान और चीन यात्राएं अमेरिका के टैरिफ युद्ध के बाद भारत की कूटनीतिक चालबाजी का हिस्सा हैं। यह भारत की स्वतंत्र और बहु-आयामी विदेश नीति को दर्शाता है, जो आर्थिक हितों, क्षेत्रीय स्थिरता, और वैश्विक प्रभाव को संतुलित करने पर केंद्रित है। हालांकि, चीन के साथ नजदीकी को सतर्कता के साथ देखा जा रहा है, क्योंकि सीमा विवाद और ऐतिहासिक अविश्वास अभी भी चुनौतियां हैं। यह कदम अमेरिका को यह संदेश देता है कि भारत अपने हितों से समझौता नहीं करेगा।
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