चीन के पीछे हटने से डॉलर पर खतरा
नई दिल्ली: अमेरिका(US) का बढ़ता कर्ज अब वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चिंता बन गया है। चीन और जापान(Japan) जैसे देशों के अमेरिकी(US) बॉन्ड बेचने से डॉलर(Dollar) की स्थिति कमजोर पड़ रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेतावनी दी है कि अमेरिका का कर्ज नियंत्रण से बाहर हो चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो डॉलर की वैश्विक पकड़ कमजोर हो जाएगी, जिससे कई देशों की अर्थव्यवस्था डगमगा सकती है।
बढ़ते कर्ज और ब्याज से संकट गहराया
वित्तीय विशेषज्ञ सार्थक आहूजा के अनुसार, अमेरिका पर 36 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है, जो यूरोप, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका(US) की कुल जीडीपी से अधिक है। यह हर अमेरिकी नागरिक पर लगभग 100,000 डॉलर का कर्ज बनता है। इस भारी देनदारी के पीछे 2008 के बेलआउट पैकेज, महामारी के दौरान राहत योजनाएँ और रक्षा खर्च मुख्य कारण हैं। अब चीन, जापान और ब्रिटेन जैसे देश अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड बेच रहे हैं, जिससे अमेरिकी वित्तीय प्रणाली पर दबाव बढ़ा है।
ब्याज दरों में वृद्धि से और बोझ
निवेशकों को बनाए रखने के लिए अमेरिका ब्याज दरें बढ़ा रहा है, किंतु इससे वार्षिक ब्याज भुगतान 1 ट्रिलियन डॉलर से पार पहुंच गया है। यह रकम पेंटागन के वार्षिक बजट से भी अधिक है। इस स्थिति में वैश्विक पूंजी प्रवाह का रुख बदलने लगा है। अब कई देशों के केंद्रीय बैंक सोने में निवेश कर रहे हैं और चीनी युआन एक वैकल्पिक व्यापारिक मुद्रा के रूप में उभर रहा है।
भारत के लिए बचाव के उपाय
भारत को इस संकट से खुद को बचाने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी। सबसे पहले, डी-डॉलराइजेशन के तहत रूस और यूएई जैसे देशों के साथ स्थानीय मुद्राओं में व्यापार बढ़ाना होगा। इसके अलावा, ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं के जरिये भारत को वैश्विक निर्माण केंद्र बनाना होगा ताकि विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सके। इसी क्रम में, भारतीय रिजर्व बैंक को अपने विदेशी मुद्रा भंडार का विविधीकरण करना चाहिए ताकि सोने और अन्य स्थिर मुद्राओं का हिस्सा बढ़ाया जा सके।
अन्य पढ़े: Breaking News: Gold: सोना क्यों उछला? अमेरिका की ‘सोने पर चाल’
राजकोषीय अनुशासन और स्थिर रुपया
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत को अपने राजकोषीय अनुशासन पर ध्यान देना होगा और विकास दर को ऊंचा रखना होगा। इससे रुपये की स्थिरता बनी रहेगी और वैश्विक अस्थिरता के बीच भारत ग्लोबल सप्लाई चेन का मजबूत हिस्सा बन सकेगा। यदि भारत यह नीति अपनाता है, तो वह आने वाले वैश्विक वित्तीय तूफान से सुरक्षित रह सकता है।
अमेरिका के बढ़ते कर्ज से दुनिया को क्या खतरा है?
अमेरिका का कर्ज यदि नियंत्रण से बाहर होता है तो डॉलर की विश्वसनीयता घटेगी। इसका असर वैश्विक व्यापार, निवेश और मुद्रा बाजारों पर पड़ेगा, जिससे कई देशों की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
भारत डॉलर संकट से कैसे सुरक्षित रह सकता है?
भारत को स्थानीय मुद्रा आधारित व्यापार, मजबूत निर्माण क्षेत्र और सुव्यवस्थित विदेशी मुद्रा भंडार के जरिये अपनी वित्तीय स्थिति को स्थिर रखना होगा। साथ ही आर्थिक अनुशासन से रुपये की मजबूती सुनिश्चित करनी होगी।
अन्य पढ़े: