नई दिल्ली, 19 सितंबर 2025: चीन (Chine) ने अपने पुराने J-6 फाइटर जेट्स (सोवियत MiG-19 का चाइनीज वर्जन) को सुपरसोनिक ड्रोन (Drone) में बदलकर एक बड़ा कदम उठाया है। चेंगचुन एयर शो से पहले 16 सितंबर को इन ड्रोन्स को प्रदर्शित किया गया। अब सवाल उठ रहा है कि क्या भारत अपने MiG-21 बाइसन जेट्स के साथ ऐसा कर सकता है, जो ‘फ्लाइंग कॉफिन’ के नाम से कुख्यात हैं। यह कदम न केवल लागत बचत का है, बल्कि रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
चीन का सफल प्रयोग: पुराने जेट्स से ड्रोन
चीन ने 1950-60 के दशक के J-6 जेट्स को अनमैन्ड ड्रोन में बदल दिया है। इसमें तोपें, इजेक्टर सीट और फ्यूल टैंक हटाकर ऑटोपायलट सिस्टम, ऑटोमैटिक फ्लाइट कंट्रोल, पेलोड पाइलन्स और टेरेन-फॉलोइंग नेविगेशन जोड़े गए। पहला फ्लाइट 1995 में हुआ, और 2022 तक 600 से ज्यादा J-6 को कन्वर्ट किया गया, जबकि 1,000 से अधिक स्टॉक में हैं। इन ड्रोन्स की रेंज 350 मील (560 किमी), स्पीड सुपरसोनिक (ध्वनि से तेज), और पेलोड कैपेसिटी 1,000 पाउंड (450 किग्रा) है।
उपयोग: पायलट ट्रेनिंग के लिए टारगेट, डिकॉय (दुश्मन फायर खींचने के लिए), लाइट वेपन स्ट्राइक और हाई-रिस्क रेकॉनिसेंस। ये सैचुरेशन स्ट्राइक्स (दुश्मन डिफेंस को भारी संख्या से ओवरव्हेल्म करना) के लिए उपयोगी हैं, खासकर ताइवान के पास। अमेरिका ने QF-4/QF-16 और अजरबैजान ने An-2 को इसी तरह इस्तेमाल किया। लागत: नए ड्रोन्स से 10 गुना सस्ता।
भारत के MiG-21: रिटायरमेंट और संभावनाएं
भारत के MiG-21, 1960 के दशक के, दुर्घटनाओं के कारण बदनाम हैं। आखिरी स्क्वाड्रन 26 सितंबर 2025 को रिटायर होगा, 40-50 विमान बचे हैं, और 2027 तक पूरी तरह फेज आउट। IAF के पास तब 29 स्क्वाड्रन रहेंगी, जबकि जरूरत 42 की। MiG-21 की स्पीड (मैक 2), ऊंचाई (17 किमी) और मैन्यूवरेबिलिटी ड्रोन कन्वर्शन के लिए उपयुक्त है।
कन्वर्शन: स्ट्राइक ड्रोन (चीन जैसा) या SAM टेस्ट के लिए टारगेट ड्रोन (अकाश-NG, QRSAM, XRSAM)। लागत: प्रति यूनिट ₹5-10 करोड़, जबकि नए UCAV ₹50-100 करोड़। उपयोग: एयर डिफेंस टेस्टिंग, स्टेल्थ/स्वार्म सिमुलेशन, और पाकिस्तानी ड्रोन्स के खिलाफ (ऑपरेशन सिंदू जैसा)। प्रोजेक्ट कुशा में MiG-21 को लॉन्ग-रेंज SAM के टारगेट के रूप में इस्तेमाल। HAL ने CATS प्रोग्राम के तहत कॉम्बैट ड्रोन प्रस्ताव दिया, लेकिन IAF ने मेंटेनेंस और सेफ्टी जोखिमों के कारण ठुकरा दिया।
चुनौतियां और विशेषज्ञ राय
चुनौतियां: पुरानी एवियोनिक्स, फ्लाई-बाय-वायर की कमी, कम्युनिकेशन फेलियर रिस्क, और बजट। ज्यादातर MiG-21 स्टोर या स्क्रैप होंगे। विशेषज्ञों का कहना: भारत टारगेट ड्रोन्स बना सकता है, लेकिन स्ट्राइक के लिए CATS और ALFA-S (स्वार्म ड्रोन) पर फोकस। वियतनाम भी MiG-21 कन्वर्ट करने की योजना में। 1,000+ रिटायर्ड MiG-21 स्टॉक का उपयोग लागत प्रभावी। भविष्य: तेजस Mk2 और घाटक UCAV से रिप्लेसमेंट।
निष्कर्ष: लागत बचत का अवसर, लेकिन स्वदेशी पर जोर
भारत MiG-21 को ड्रोन में बदल सकता है, खासकर टेस्टिंग के लिए, लेकिन स्ट्राइक कन्वर्शन सीमित। स्वदेशी UCAV और स्वार्म प्रोग्राम पर फोकस रणनीतिक जरूरत। यह कदम IAF की क्षमता बढ़ा सकता है, लेकिन चुनौतियां दूर करनी होंगी।
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