Hindi News: यूपी में अब जाति आधारित रैलियों पर रोक, FIR और अरेस्ट मेमो में भी नहीं लिखी जाएगी जाति

By Vinay | Updated: September 22, 2025 • 10:06 AM

उत्तर प्रदेश सरकार ने जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। अब सार्वजनिक स्थानों, पुलिस रिकॉर्ड (Police Record) और कानूनी दस्तावेजों में जाति का जिक्र पूरी तरह प्रतिबंधित होगा। इसमें जाति आधारित रैलियों और आयोजनों पर रोक शामिल है, साथ ही FIR, अरेस्ट मेमो और चार्जशीट से भी जाति का उल्लेख हटाया जाएगा। यह फैसला 21 सितंबर 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के कड़े आदेश के बाद लिया गया, जिसका मकसद संवैधानिक समानता को बढ़ावा देना है

आदेश की पृष्ठभूमि

यह नीति इलाहाबाद हाईकोर्ट के 19 सितंबर 2025 को प्रवीण छेत्री बनाम उत्तर प्रदेश सरकार मामले में सुनाए गए फैसले से शुरू हुई। याचिकाकर्ता प्रवीण छेत्री, जिन्हें शराब तस्करी के मामले में गिरफ्तार किया गया था, ने FIR और जब्ती मेमो में उनकी जाति—भिल—के उल्लेख पर कड़ा ऐतराज जताया था। जस्टिस विनोद दीवाकर ने सुनवाई के दौरान जाति के “महिमामंडन” को “राष्ट्र-विरोधी” और संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ बताया। कोर्ट ने यूपी सरकार को तुरंत पुलिस दस्तावेजों की प्रक्रिया में बदलाव करने का आदेश दिया और DGP के इस तर्क को खारिज कर दिया कि पहचान के लिए जाति जरूरी है।

मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा ने सभी जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस प्रमुखों और प्रशासनिक अधिकारियों को 10-सूत्रीय दिशा-निर्देश जारी किए। इसमें जातिगत पूर्वाग्रहों को खत्म करने और आधुनिक पहचान विधियों जैसे फिंगरप्रिंट, आधार नंबर, मोबाइल डिटेल्स और माता-पिता के नाम (अब अभियुक्तों के लिए माँ का नाम भी अनिवार्य) पर जोर दिया गया है।

नए नियम और प्रतिबंध

सरकार का यह कदम कई स्तरों पर लागू होगा:

ये कदम “सभी के लिए समान व्यवहार” सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए हैं, जो तकनीक और तटस्थ पहचानकर्ताओं पर निर्भर होंगे।

समाज और कानून व्यवस्था पर असर

विशेषज्ञ इसे जातिविहीन समाज की दिशा में एक प्रगतिशील कदम मान रहे हैं, जिससे सामाजिक तनाव और न्याय प्रणाली में पक्षपात कम हो सकता है। जाति के बजाय व्यक्तिगत विवरण पर ध्यान देने से जांच प्रक्रिया सुगम हो सकती है और समावेशिता को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, यूपी जैसे विविधतापूर्ण राज्य में, जहाँ जातिगत गतिशीलता अक्सर राजनीति और पुलिसिंग को प्रभावित करती है, इसे लागू करना एक चुनौती होगी। आलोचकों का कहना है कि यह सांस्कृतिक संदर्भों को नजरअंदाज कर सकता है, जबकि समर्थक इसे संवैधानिक जीत मान रहे हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसकी तात्कालिकता पर जोर देते हुए कहा, “आधुनिक साधनों जैसे फिंगरप्रिंट, आधार, मोबाइल नंबर और माता-पिता के विवरण उपलब्ध होने पर जातिगत पहचान की कोई जरूरत नहीं है।” यह फैसला न केवल यूपी के लिए बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है।

यूपी में इन बदलावों को लागू करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। अब देखना यह है कि यह गहरे जड़ें जमाए जातिगत पूर्वाग्रहों को कितना कम कर पाएगा। फिलहाल, लखनऊ से संदेश साफ है: विभाजन पर एकता, पहचान पर समानता।

ये भी पढ़ें

breaking news cast Caste-based rallies are now banned in UP High Court Dicision Hindi News letest news UP NEWS UP Police