मां चंद्रघंटा का स्वरूप शक्ति और हिम्मत का प्रतीक है। इनके माथे पर अर्धचंद्र नियत होने के कारण इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनके दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र सुंदर रहते हैं और मुद्रा संग्राम की होती है।
चैत्र नवरात्रि के त्रेय दिन मां चंद्रघंटा की अर्चना से व्यक्ति निडर और पराक्रमी बनता है। विशेष रूप से जिनकी कुंडली में मंगल दुर्बल होता है, उनके लिए यह आराधना उपकारक होती है।तंत्र साधना में यह मणिपुर चक्र को प्रबंधित करती हैं। इनकी वंदना से जन्म-जन्मांतर के पापों से मोक्ष मिलती है और आत्मबल में संवृद्धि होती है।मां चंद्रघंटा का संबंध मंगल ग्रह से होता है। इनकी अर्चना से व्यक्ति के स्वभाव में विनीत आती है और चेहरे पर तेज़ एवं आभा बढ़ती है।
मां चंद्रघंटा: पराक्रम, निर्भयता और दिव्य ऊर्जा की देवी
मां चंद्रघंटा का स्वरूप सामर्थ्य और निडरता का प्रतीक है। इनके मस्तक पर अर्धचंद्र अलंकृत होने के कारण इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। दसों हाथों में अस्त्र धारण किए हुए इनका युद्धमुद्रा में रहना कांति का परिचायक है।चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन साहस और आत्म-भरोसा प्राप्त करने का दिन माना जाता है। इस दिन माता चंद्रघंटा की अर्चना से व्यक्ति निडर और बहादुर बनता है। विशेष रूप से, जिनकी कुंडली में मंगल ग्रह बलहीन होता है, उनके लिए यह अर्चना अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।मां चंद्रघंटा तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को प्रबंधित करती हैं। इनकी पूजा से शरीर में दिव्य ऊर्जा का संचार होता है और स्वभाव में नम्रता आती है। खगोल-विद्या में इनका संबंध मंगल ग्रह से होता है, जिससे व्यक्ति के व्यक्तित्व में तेज और भरोसा बढ़ता है।