बिहार सरकार (Bihar Government)छठ पूजा (Chhat Pooja) यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल कराने के लिए प्रस्ताव भेजेगी. यह पहल छठ महापर्व को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही है. बिहार संग्रहालय इसके लिए विस्तृत डोज़ियर तैयार कर रहा है.
बिहार की सबसे पवित्र और जनभावनाओं से जुड़ी छठ पूजा को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की कोशिश की जा रही है. राज्य सरकार की कला, संस्कृति एवं युवा विभाग ने छठ पूजा को यूनेस्को (UNESCO) की ‘अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची’ में शामिल करने का प्रस्ताव तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
इस प्रस्ताव का उद्देश्य है कि छठ पूजा को सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि एक समाजिक-सांस्कृतिक विरासत के रूप में वैश्विक मान्यता दिलाई जाए.
छठ पूजा सिर्फ पूजा नहीं एक जीवित परंपरा
छठ पूजा एक ऐसा त्योहार है जो न केवल बिहार में, बल्कि देश-विदेश के हर उस कोने में मनाया जाता है जहां बिहार के लोग बसे हैं. इस पर्व में लोग सूर्य को अर्घ्य देते हैं, नदी या जलाशयों में स्नान करते हैं, विशेष प्रसाद बनाते हैं और सामूहिक रूप से उपवास रखते हैं. यह पूजा पंडित के बिना होती है और इसमें हर वर्ग, हर जाति और धर्म के लोग शामिल होते हैं. यही इसे और खास बनाता है.
यूनेस्को में दर्जा मिलने से क्या होगा?
अगर यूनेस्को छठ पूजा को अपनी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल करता है, तो इससे इस परंपरा को संरक्षण, प्रचार और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी. साथ ही, आने वाली पीढ़ियों को यह समझाने में आसानी होगी कि छठ पूजा केवल एक पूजा नहीं, बल्कि पर्यावरण, परंपरा और सामूहिकता की मिसाल है.
बिहार संग्रहालय तैयार कर रहा है डोज़ियर
इस प्रस्ताव को ठोस आधार देने के लिए बिहार संग्रहालय एक डोज़ियर तैयार कर रहा है, जिसमें छठ पूजा के हर पहलू को जैसे पारंपरिक प्रसाद, गीत, रीति-रिवाज, नदी संस्कृति और सामूहिक सहभागिता को विस्तार से बताया जाएगा. यह डोज़ियर केंद्र सरकार के माध्यम से यूनेस्को को भेजा जाएगा.
दुर्गा पूजा बना उदाहरण
गौरतलब है कि कुछ समय पहले कोलकाता की दुर्गा पूजा को यूनेस्को की इसी सूची में शामिल किया गया था. उसी मॉडल पर अब बिहार भी छठ पूजा को वैश्विक मंच तक पहुंचाने की तैयारी में जुटा है.
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