मुंबई । बालीवुड एक्ट्रेस ईशा कोप्पिकर (Isha Koppikar) के लिए दशहरा हमेशा से सिर्फ़ अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक ही नहीं रहा, बल्कि उनके जीवन में मौजूद चार पीढ़ियों (Four Generation) की सशक्त महिलाओं की विरासत और ताकत का उत्सव रहा है। बचपन में हर अवसर पर नानी के साथ बिताए गए पल उनके लिए अनमोल रहे, जिन्होंने उन्हें जीवन में गरिमा, आत्मसम्मान और मजबूती के साथ जीना सिखाया।
नानी बनीं ईशा की पहली गुरु
एक्ट्रेस ईशा कहती हैं, मेरी नानी मेरी पहली गुरु थीं, जिन्होंने मुझे सिखाया कि असली मजबूती क्या होती है। आज मेरे अंदर जो नैतिक मूल्य, सिद्धांत और सोच है, वो उनकी अडिग विचारधारा का ही प्रतिबिंब है। फिर आईं उनकी माँ, जिन्होंने न केवल इस विरासत को आगे बढ़ाया बल्कि जीवन की कठिनाइयों का सामना गरिमा (Garima) और संकल्प के साथ करना भी सिखाया। ईशा कहती हैं, मेरी माँ ने मुझे सिखाया कि असली सहनशक्ति क्या होती है।
माँ से सीखा धैर्य और आत्मविश्वास
उन्होंने जीवन की चुनौतियों का सामना जिस धैर्य और आत्मविश्वास से किया, उसने मुझे कभी यह शक नहीं होने दिया कि एक औरत क्या कुछ कर सकती है। इन प्रारंभिक शिक्षाओं ने ही ईशा को वह नींव दी, जिस पर उन्होंने अपने करियर और निजी जीवन दोनों को खड़ा किया।
खुद की दुर्गा बनने की सीख
ईशा ने इस विरासत को अपने जीवन में पूरी शिद्दत से निभाया। फिल्मों में मजबूत और अडिग किरदार निभाना हो या निजी जीवन की जटिलताओं का सामना करना, ईशा ने हर लड़ाई अकेले लड़ी। उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए जो आसान नहीं थे, लेकिन हर बार उन्होंने अपनी शक्ति और साहस से जीवन को नई दिशा दी। ईशा कहती हैं, मैंने महसूस किया कि मुझे खुद ही अपनी दुर्गा बनना होगा। कई बार हमारी लड़ाइयाँ चुपचाप होती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे कम महत्वपूर्ण हैं।
बेटी के साथ चौथी पीढ़ी तक पहुँची शक्ति
आज, जब ईशा खुद एक माँ हैं और अपनी बेटी रिआना के साथ दशहरा मना रही हैं, यह त्यौहार उनके लिए और भी गहरा हो गया है। अब यह सिर्फ़ अपनी नानी और माँ से मिली शक्ति का सम्मान नहीं है, बल्कि उसी योद्धा भावना को चौथी पीढ़ी तक पहुँचाने का पर्व बन गया है। ईशा कहती हैं, जब मैं अपनी बेटी को देखती हूँ, तो मुझे भविष्य दिखाई देता है। मैं चाहती हूँ कि वह जानकर बड़ी हो कि वह सशक्त महिलाओं के वंश से है, उसकी रगों में उसकी परदादी, नानी और माँ की शक्ति प्रवाहित होती है।
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