अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत पर अगले महीने लगाए जाने वाले रेसिप्रोकल टैरिफ़ का नुकसान अमेरिकियों को भी भुगतना पड़ सकता है.
भारत पर लगने वाले इस टैरिफ़ के कारण लाखों अमेरिकियों पर मेडिकल बिलों का बोझ बढ़ सकता है.
भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने व्यापार समझौते की उम्मीद में अधिकारियों से चर्चा के लिए पिछले सप्ताह अमेरिका की यात्रा की थी. गोयल भारत के महत्वपूर्ण निर्यात उद्योगों जैसे औषधीय दवाओं पर टैक्स वृद्धि को रोकना चाहते हैंअमेरिका का नया टैरिफ़ डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन भारत पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने जा रहा है।यह टैक्स खासकर दवाओं पर असर डालेगा, जो भारत अमेरिका को भारी मात्रा में सप्लाई करता है।
भारतीय दवाओं का महत्व अमेरिका में:

अमेरिका में बिकने वाली लगभग आधी जेनेरिक दवाइयाँ भारत से आती हैं।
2022 में भारतीय जेनेरिक दवाओं की वजह से अमेरिका को लगभग 219 अरब डॉलर की बचत हुई थी।
भारत से आयातित सस्ती दवाइयाँ अमेरिका में गरीब और बीमा न होने वाले लोगों के लिए बेहद जरूरी हैं।
ट्रंप पहले से ही चीनी आयात पर अपने टैरिफ़ के कारण अमेरिकी अस्पतालों और जेनेरिक दवा निर्माताओं से दबाव का सामना कर रहे हैं.
अमेरिका में बिकने वाली 87% दवाओं के लिए कच्चा माल बाहर से आता है. ये आपूर्ति मुख्य रूप से चीन में केंद्रित है, जो वैश्विक आपूर्ति का लगभग 40% हिस्सा पूरा करता है.
ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से चीनी आयात पर टैरिफ़ में 20% की वृद्धि के साथ, दवाओं के लिए कच्चे माल की लागत पहले ही बढ़ गई है.
ट्रंप चाहते हैं कि टैरिफ से बचने के लिए कम्पनियां दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग अमेरिका में स्थानांतरित कर दें.

संभावित नुकसान:
टैरिफ़ बढ़ने से भारत की जेनेरिक दवा कंपनियों की लागत बढ़ेगी।
कंपनियां अमेरिका में निर्माण करना चाहें तो लागत तीन से चार गुना हो जाएगी और नई फैक्टरी बनाने में 5-10 साल लग सकते हैं।
अमेरिका का उद्देश्य:
ट्रंप प्रशासन चाहता है कि कंपनियां दवाओं का उत्पादन अमेरिका में करें ताकि रोजगार बढ़े।
पर यह उद्देश्य कम लागत वाली दवाओं के लिए अव्यावहारिक साबित हो सकता है।
भारत का नजरिया:
भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत की, ताकि समझौता हो सके और भारत के निर्यातकों को नुकसान न हो।