लेकिन हर्जाने का आधार है
नई दिल्ली: दिल्ली(Delhi) हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि व्यभिचार (Adultery) यानी शादी से बाहर का रिश्ता अपने आप में कोई आपराधिक कृत्य नहीं है। हालांकि, यह एक वैवाहिक गलती है जिसे तलाक के मामलों में एक आधार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। जस्टिस पुरुषेन्द्र कौरव ने इस बात पर जोर दिया कि एक शादीशुदा व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रेमी या प्रेमिका के खिलाफ मुकदमा दायर करके आर्थिक मुआवजे की मांग कर सकता है।
यह फैसला एक पत्नी की याचिका पर आया है, जिसने अपने पति की प्रेमिका से भावनात्मक और आर्थिक नुकसान के लिए मुआवजे की मांग की है। कोर्ट ने कहा कि भले ही सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है, फिर भी इसके “खतरनाक नतीजे” हो सकते हैं, जिससे शादी टूट सकती है और परिवार को नुकसान हो सकता है।
‘एलियनेशन ऑफ अफेक्शन’ का सिद्धांत
दिल्ली(Delhi) हाईकोर्ट का यह फैसला भारत में ‘एलियनेशन ऑफ अफेक्शन’ के सिद्धांत को लागू करने की दिशा में एक पहला उदाहरण बन सकता है। यह एक कानूनी सिद्धांत है जो यह बताता है कि अगर कोई तीसरा व्यक्ति जानबूझकर किसी शादी में प्यार और विश्वास को तोड़ता है, तो उसे कानूनी तौर पर जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
इस मामले में, पति और उसकी प्रेमिका ने तर्क दिया था कि शादी से जुड़े मामलों की सुनवाई फैमिली कोर्ट में होनी चाहिए, न कि हाईकोर्ट(Delhi) में। लेकिन, जस्टिस कौरव ने स्पष्ट किया कि यह मामला आपराधिक नहीं, बल्कि सिविल कानून से जुड़ा है, इसलिए इसे सिविल कोर्ट में देखा जा सकता है, जिससे पत्नी को हर्जाने की मांग करने का अधिकार मिलता है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और संसदीय पैनल की सिफारिश
यह फैसला जोसेफ शाइन मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2018 के ऐतिहासिक फैसले पर आधारित है। उस फैसले में, पांच-जजों की संविधान पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित करते हुए व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह कानून महिलाओं के साथ भेदभाव करता है, क्योंकि यह केवल पुरुष को दोषी मानता था।
इसके बावजूद, एक संसदीय पैनल ने सरकार से यह सिफारिश की थी कि व्यभिचार को फिर से अपराध बनाया जाए, क्योंकि यह विवाह की पवित्रता को प्रभावित करता है। पैनल ने यह भी सुझाव दिया था कि इस कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए, ताकि पुरुष और महिला दोनों को समान रूप से जवाबदेह ठहराया जा सके। हालांकि, अगर सरकार(Delhi) यह सिफारिश मानती है, तो यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ होगा।
दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यभिचार (एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर) को अपराध क्यों नहीं माना?
हाईकोर्ट ने व्यभिचार को अपराध नहीं माना, क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले पर आधारित है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था, और कहा था कि यह कानून व्यभिचार को अपराध नहीं मान सकता।
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार, कोई व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रेमी/प्रेमिका से क्या मांग सकता है?
हाईकोर्ट के अनुसार, कोई भी पति या पत्नी अपने जीवनसाथी के प्रेमी/प्रेमिका से अपनी शादी तोड़ने और आपसी प्रेम को नुकसान पहुंचाने के लिए आर्थिक मुआवजे की मांग कर सकता है, क्योंकि यह एक सिविल अपराध है।
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