Budh Pradosh Vrat : भाद्रपद बुध प्रदोष व्रत भगवान शिव को है समर्पित

By Kshama Singh | Updated: August 20, 2025 • 5:26 PM

नौकरी और व्यापार में मिलती है सफलता

आज बुध प्रदोष व्रत है, यह व्रत भगवान शिव (Lord Shiva) को समर्पित है। इस शुभ तिथि पर देवों के देव महादेव की पूजा करने वाले भक्तों का जीवन सुखी होता है और उन्हें किसी भी प्रकार के भौतिक सुखों की कमी नहीं होती है। बुध प्रदोष व्रत (Budh Pradosh Vrat) के दिन मंदिरों में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है तो आइए हम आपको बुध प्रदोष व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं

जानें भाद्रपद बुध प्रदोष व्रत के बारे में

हिन्दू धर्म में बुध प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है। हर माह में 2 बार प्रदोष व्रत रखा जाता है, एक शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर और दूसरा कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि। बुध प्रदोष व्रत को भगवान शिव और मां पार्वती को समर्पित माना गया है। अगस्त दिन बुधवार को प्रदोष तिथि का व्रत किया जाएगा, चूंकि प्रदोष तिथि बुधवार के दिन पड़ रही है इसलिए इस तिथि को बुध प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाएगा। प्रदोष व्रत देवाधिदेव महादेव को अति प्रिय है। वहीं, बुधवार का दिन पड़ने से इस व्रत का संबंध भगवान शिव के साथ उनके पुत्र गणपति से भी जुड़ जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन पूजा करने से सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

भाद्रपद बुध प्रदोष व्रत का महत्व

धार्मिक मत है कि त्रयोदशी तिथि पर शिव-शक्ति की पूजा करने से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साधक श्रद्धा भाव से त्रयोदशी के दिन शिव-शक्ति की पूजा करते हैं। बुध प्रदोष व्रत को शास्त्रों में बुद्धि, विद्या, वाणी और नौकरी व व्यापार में सफलता प्रदान करने वाला व्रत माना गया है। इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती और भगवान गणेश की भी विशेष पूजा का विधान है। यह व्रत विद्यार्थियों, व्यापारियों और वाणी से कार्य करने वालों (वकील, वक्ता, लेखक, शिक्षक आदि) के लिए विशेष फलदायी है। यह व्रत करने से व्रती को धन, विद्या और वाणी पर नियंत्रण की प्राप्ति होती है और रोग और कष्ट दूर होते हैं, जीवन में शांति और सौहार्द बढ़ता है।

भाद्रपद बुध प्रदोष व्रत पर ऐसे करें पूजा

पंडितों के अनुसार बुध प्रदोष व्रत का दिन खास होता है इसलिए बुध प्रदोष व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर घर के सभी काम करने के बाद स्नान कर लें। अब भगवान शिव को नमन करते हुए व्रत का संकल्प लें। इसके बाद सबसे पहले शिवलिंग पर पंचामृत से अभिषेक करें। अभिषेक के लिए जल में गंगाजल, दूध, दही, शहद आदि चढ़ाकर अभिषेक करें। अभिषेक करते समय ओम नमो भगवते रुद्राय नमः मंत्र का जप करें। फिर शिवलिंग पर सफेद चंदन, धतूरा, शमी के पत्तियां, फूल, फल, भस्म आदि अर्पित करें।

ये सभी चीजें अर्पित करते हुए ओम तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि! तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् मंत्र का जप करें। इसके बाद घी का दीपक जलाकर भगवान शिव की आरती करें। प्रदोष व्रत में दो बार पूजा करें। पहले सुबह और दूसरा प्रदोष काल का समय व्रत करें। पूजा के अंत में भगवान शिव की आरती के बाद पूजा पाठ में की गई भूल चूक के लिए माफी मांगे।

भाद्रपद बुध प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। बुधवार को पड़ने पर इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाता है। दृक पंचांग के अनुसार, 20 अगस्त को भाद्रपद माह का पहला बुध प्रदोष व्रत मनाया जाएगा। त्रयोदशी तिथि दोपहर 1 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर 21 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगी। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 56 मिनट से रात 9 बजकर 7 मिनट तक है। इस दिन राहुकाल दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से 2 बजकर 2 मिनट तक रहेगा, जिसमें पूजा नहीं करनी चाहिए।

भाद्रपद बुध प्रदोष व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा

शास्त्रों में बुध प्रदोष व्रत से जुड़ी एक कथा प्रचलित है, इसके अनुसार प्राचीन समय में विदर्भ क्षेत्र में एक ब्राह्मणी भिक्षा मांग कर जीवन यापन करती थीं। ब्राह्मणी के पति का निधन हो गया था। अतः जीविकोपार्जन के लिए ब्राह्मणी घर-घर जाकर भिक्षा मांगती थीं। एक दिन ब्राह्मणी संध्याकाल में घर लौट रही थीं, तो राह में वृद्ध ब्राह्मणी को दो बालक खेलते हुए दिखे। उस समय ब्राह्मणी इधर-उधर देखी। जब बालक के समीप कोई न दिखा, तो अकेला जान बच्चे को अपने घर ले आईं। दोनों बालक वृद्ध ब्राह्मणी का प्रेम पाकर आनंदित हो उठें। समय के साथ बच्चे बड़े होते गए। दोनों लड़के वृद्ध ब्राह्मणी के काम में हाथ भी बंटाने लगे।

#विदर्भ के राजकुमार हैं दोनों बालक

जब दोनों लड़के बड़े हो गए, तो ब्राह्मणी ऋषि शांडिल्य के पास जाकर अपनी आपबीती सुनाई। उस समय दिव्य शक्ति से दोनों बालकों का भविष्य ज्ञात कर ऋषि शांडिल्य बोले- ये दोनों बालक विदर्भ के राजकुमार हैं। बाहरी आक्रमण की वजह से इनका राजपाट छीन गया है। इसके लिए बालक बेघर हो गए हैं। जल्द ही इन्हें खोया हुआ राज्य प्राप्त होगा। इसके लिए तुम प्रदोष व्रत अवश्य करो। अगर बच्चे कर सकते हैं, तो उन्हें भी प्रदोष व्रत करने की सलाह दो। ऋषि शांडिल्य के वचनों का पालन कर वृद्ध ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया। उन्हीं दिनों बड़े लड़के की भेंट स्थानीय राजकुमारी से हुई। दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगे।

#वृद्ध ब्राह्मणी को दिया मां का दर्जा

यह जानकारी स्थानीय राजा को हुई, तो राजा ने विदर्भ राजकुमार से मिलने की इच्छा जताई। कालांतर में विदर्भ के राजकुमार से भेंट के बाद राजा ने विवाह की सहमति दे दी। विवाह के पश्चात दोनों राजकुमारों ने अंशुमति के पिता की मदद से विदर्भ पर हमला कर दिया। इस युद्ध में विदर्भ नरेश को करारी शिकस्त मिली। दोनों राजकुमारों को विदर्भ पर शासन करने का पुनः अवसर मिला। राजकुमारों ने वृद्ध ब्राह्मणी को प्रणाम कर अपने राज्य में उच्च स्थान दिया। साथ ही वृद्ध ब्राह्मणी को मां का दर्जा दिया। वृद्ध ब्राह्मणी ने जीवनपर्यंत तक भगवान शिव की पूजा की।

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