दुर्भाग्य हरने वाली महाशक्ति
मार्कण्डेय पुराण के दुर्गा(Durga) सप्तशती में कहा गया है कि देवी ही समस्त प्राणियों में शक्ति रूप में निवास करती हैं: ‘या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।’ यह स्पष्ट है कि बड़े-से-बड़े दुर्भाग्यग्रस्त व्यक्ति भी इनकी आराधना करके सौभाग्यशाली(Fortunate) बन जाते हैं। इस बात की पुष्टि भगवान श्री राम के शब्दों से भी होती है, जब वे हनुमानजी से कहते हैं कि माता दुर्गा(Durga) महाशक्ति हैं, सब कार्यों को करने में समर्थ और अव्यया हैं, और यहाँ तक कि ब्रह्मा, विष्णु, और महेश भी उनके अंश से उत्पन्न होते हैं। श्री राम स्वयं कहते हैं कि उन्होंने जगन्माता की आराधना करके ही अपने मनोरथों को पूर्ण किया और सर्वत्र प्रसिद्धि पाई। निःसंदेह, जगदम्बा की सेवा सर्वाभीष्ट प्रदायिनी है और सभी मनोरथों को पूर्ण करती है।
नवार्ण मंत्र और नवरात्र का ज्योतिषीय महत्व
सृष्टि की अवधारणा ‘अग्नि-सोमात्मकं जगत’ को शिव-शक्ति के रूप में ही माना गया है, जो प्रत्येक मनुष्य में शारीरिक एवं मानसिक रूप से विद्यमान नर-मादा या धन-ऋण(plus minus) शक्तियों को दर्शाती है। नवरात्र का समय आराधना और साधना के लिए श्रेष्ठफलप्रद होता है, जिसका आधार ज्योतिष में निहित है। नवरात्र में नौ संख्या है और ग्रह भी नौ ही हैं। नवार्ण मंत्र नवदुर्गा(Durga) का सर्वाधिक लोकप्रिय मंत्र है और इसका नवरात्रों पर विशेष महत्व है। ‘नवार्ण’ का अर्थ है नौ अक्षर, जिनमें मंत्रविद्या के अनुसार नवदुर्गा का वास माना गया है। इस महामंत्र का विशुद्ध स्वरूप है: ‘ऐं ह््रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’। यह मंत्र साधक को सिद्धि प्रदान करने में अत्यंत सहायक है।
नवदुर्गा: शक्ति के नौ विशिष्ट स्वरूप
शक्ति उपासना का अर्थ मुख्यतः महाकाली, महालक्ष्मी, और महासरस्वती की आराधना से लिया जाता है, यद्यपि सीता, पार्वती, लक्ष्मी आदि सभी शक्तिस्वरूपा हैं। नवरात्र में विशेष रूप से नवदुर्गा की अर्चना की जाती है। नवदुर्गा के नौ विशिष्ट रूप क्रमशः हैं: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डिनी, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री। ये सभी माँ दुर्गा के विभिन्न स्वरूप हैं। इनकी आराधना के प्रकार और फल भिन्न-भिन्न हैं। इनमें से अंतिम चार शक्तियाँ—कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री—को विशेष रूप से धर्म, अर्थ, काम, एवं मोक्ष रूपी पुरुषार्थ चतुष्टय को प्रदान करने वाली माना गया है।
नवार्ण मंत्र का शुद्ध स्वरूप क्या है और इसका क्या महत्व है?
नवार्ण मंत्र का शुद्ध स्वरूप है ‘ऐं ह््रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’। ‘नवार्ण’ का अर्थ नौ अक्षर है, और मंत्रविद्या के अनुसार इसके प्रत्येक अक्षर में नवदुर्गा का वास होता है, जिससे यह नवरात्रों में भगवती दुर्गा की साधना के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय और विशेष महत्व का मंत्र बन जाता है।
माता के वे कौन से चार स्वरूप हैं जो पुरुषार्थ चतुष्टय (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) को प्रदान करने वाले माने जाते हैं?
नवदुर्गा के अंतिम चार स्वरूप—कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, एवं सिद्धिदात्री—क्रमशः धर्म, अर्थ, काम, एवं मोक्ष रूपी पुरुषार्थ चतुष्टय को प्रदान करने वाले माने जाते हैं।
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