- परंपरा के अनुसार 51 या 108 दीपक जलाना शुभ माना गया है।
- यदि संभव हो तो 11, 21, 51, या 108 दीपक जलाए जा सकते हैं।
- वाराणसी (काशी) में तो पूरा गंगा घाट लाखों दीपों से सजाया जाता है, पर घरों में भी आप अपनी श्रद्धा के अनुसार दीपक जला सकते हैं।
विशेष स्थानों पर दीपदान
- गंगा या किसी पवित्र नदी में दीपदान करना अत्यंत पुण्यदायी होता है।
- यदि नदी न हो तो घर के मुख्य द्वार, तुलसी के पास, और मंदिर में दीपक जलाना शुभ माना गया है।
Kartik Purnima Par Kitne Diye Jalaye 2025 (कार्तिक पूर्णिमा पर कितने दीये जलाएं): इस साल कार्तिक पूर्णिमा का पावन पर्व 5 नवंबर 2025 को मनाया जा रहा है। खास बात ये है कि इस दिन देव दिवाली भी मनाई जाती है जिसकी खास रौनक वाराणसी में देखने को मिलती है।
दिवाली की तरह ही इस पूर्णिमा पर भी दीपक जलाना बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन लोग अपने घरों को दीयों की रोशनी से सजाते हैं और भगवान शिव, श्री हरि विष्णु और लक्ष्मी माता की विधि विधान पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया गया था जिसकी खुशी में देवताओं ने दीप जलाकर भगवान शिव का स्वागत किया था। चलिए जानते हैं कार्तिक पूर्णिमा और देव दिवाली पर कितने दीये जलाने चाहिए।
कार्तिक पूर्णिमा पर कितने दीये जलाएं
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) और देव दिवाली पर आप कितने भी दीये जला सकते हैं। बस इस बात का ध्यान रखना है कि दीपकों की संख्या विषम में होनी चाहिए। जैसे 11, 21, 51 और 108। बता दें कार्तिक पूर्णिमा पर 365 बाती का दीपक जलाने का भी विशेष महत्व माना जाता है।
दीये जलाने का समय
देव दिवाली और कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रदोष काल में दीपक (Deepak) जलाए जाते हैं। ऐसे में आप शाम 5.30 बजे से 7.30 बजे तक के बीच में कभी भी दीये जला सकते हैं।
दिन कहां-कहां दीपक जलाएं
पूर्णिमा के दिन घर के मंदिर, मुख्य द्वार, तुलसी के पौधे, घर के पास किसी मंदिर में, पीपल के पेड़ के नीचे और नदी किनारे दीपक जलाना बेहद शुभ माना जाता है। इसके अलावा आप घर के कोने-कोने में भी दीपक जरूर जलाएं।
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कार्तिक पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार से जुड़ी मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा का दिन भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार से विशेष रूप से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में प्रकट होकर मनु को प्रलय के समय वेदों की रक्षा करने और सृष्टि को पुनः स्थापित करने का मार्ग दिखाया था।
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