सौभाग्य और शुक्र दोष शांति का महाव्रत
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि यानी 10 अक्टूबर को करवा चौथ(Karwa Chauth) का महाव्रत है। यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इसके शुभ प्रभाव से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस वर्ष करवा चौथ शुक्रवार के दिन पड़ रहा है, जिससे यह तिथि और भी अधिक खास हो गई है। चतुर्थी और शुक्रवार के इस शुभ संयोग में, भगवान गणेश, चौथ माता(Chauth Mata), महालक्ष्मी और शुक्र ग्रह की एक साथ पूजा का योग बन रहा है। जिन लोगों की कुंडली में शुक्र ग्रह से संबंधित दोष हैं, उनके लिए इस दिन पूजा और दूध का दान करना बहुत फलदायी हो सकता है, जिससे शुक्र दोष की शांति होती है।
चतुर्थी पर गणेश जी और महालक्ष्मी का पूजन
चतुर्थी तिथि के दिन, स्नान के बाद सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश(Lord Ganesha) की मूर्ति स्थापित करें। उन्हें स्नान कराएं, जनेऊ पहनाएं और अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र आदि अर्पित करें। वस्त्र और चावल चढ़ाने के बाद दूर्वा अर्पित करें और लड्डुओं का भोग लगाएं। पूजा के बाद आरती करें और भगवान से क्षमा याचना करें। पूजा की सफलता के लिए, गणेश जी के 12 नाम वाले मंत्रों का जप करना चाहिए, जैसे: ‘ऊँ गणाधिपतयै नम:’ या ‘ऊँ विनायकाय नम:’। अंत में प्रसाद बाँटें और यदि संभव हो तो ब्राह्मणों को भोजन कराएँ।
महालक्ष्मी और शुक्र ग्रह की पूजा
चतुर्थी और शुक्रवार के योग में महालक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा एक साथ करनी चाहिए। विष्णु-लक्ष्मी की प्रतिमा का अभिषेक करें, वस्त्र और हार-फूल अर्पित करें। तुलसी के साथ मिठाई का भोग लगाकर धूप-दीप से आरती करें। पूजा में विष्णु जी के मंत्र ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करना शुभ है। वहीं, शुक्र ग्रह की पूजा शिवलिंग रूप में की जाती है। इस शुभ योग में शिवलिंग पर दूध चढ़ाएं और सफेद फूलों से श्रृंगार करें, जो शुक्र ग्रह की शांति के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
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करवा चौथ व्रत और चंद्र दर्शन का महत्व
अखंड सौभाग्य का निर्जला व्रत
करवा चौथ(Karwa Chauth) का व्रत निर्जला होता है, जिसका अर्थ है कि व्रत करने वाली महिलाएँ पूरे दिन पानी भी नहीं पीती हैं। यह व्रत पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और परिवार में सुख-शांति एवं प्रेम के लिए किया जाता है। व्रत के दिन महिलाएँ सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद सूर्योदय से पहले सरगी खाकर व्रत की शुरुआत करती हैं। पूरे दिन निर्जल रहने के बाद, शाम को मुख्य पूजा की जाती है।
चंद्र दर्शन के बिना व्रत अपूर्ण
करवा चौथ(Karwa Chauth) व्रत में चंद्र दर्शन और चंद्र पूजा का विशेष महत्व होता है। यह व्रत शाम को चंद्रमा के दर्शन और विधिवत पूजन के बाद ही पूरा माना जाता है। पूजा के दौरान महिलाएं भगवान गणेश और करवा चौथ माता की पूजा करती हैं, इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं।
करवा चौथ के दिन चतुर्थी तिथि के साथ शुक्रवार का योग बनने से किन-किन देवताओं की पूजा का शुभ संयोग बन रहा है?
चतुर्थी और शुक्रवार के योग में भगवान गणेश, चौथ माता, महालक्ष्मी और शुक्र ग्रह की पूजा का शुभ संयोग बन रहा है।
करवा चौथ व्रत का पारण कब किया जाता है, और इस व्रत में किस प्रकार के नियम का पालन किया जाता है?
करवा चौथ(Karwa Chauth) व्रत शाम को चंद्र दर्शन और पूजन के बाद ही पूरा होता है। यह व्रत निर्जला होता है, जिसका अर्थ है कि व्रत करने वाली महिलाएँ पूरे दिन पानी भी नहीं पीती हैं।
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