बप्पा की पूजा मोदक के बिना अधूरी
गणेश चतुर्थी का पर्व हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखता है। भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी पर हर साल गणेशजी का स्वागत बड़े धूमधाम से होता है। भक्त उनके आगमन की तैयारी पहले से करते हैं और स्थापना के बाद उन्हें मोदक(Modak) का भोग अवश्य चढ़ाते हैं। गणेश पुराण(Ganesh Puran) में उल्लेख है कि मोदक बप्पा का सबसे प्रिय पकवान है और इसके बिना उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है।
गणेश पुराण में मोदक का महत्व
प्राचीन कथा के अनुसार, देवताओं ने माता पार्वती को अमृत से निर्मित दिव्य मोदक(Modak) भेंट किया था। उसे देखकर गणेशजी और कार्तिकेय(Kartikeya) दोनों उसे पाना चाहते थे। तब माता ने बताया कि इस मोदक की गंध मात्र से अमरत्व और सभी शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त होता है। इसके बाद माता ने शर्त रखी कि जो सबसे पहले सभी तीर्थों का भ्रमण कर लौटेगा, वही मोदक पाएगा।
कार्तिकेय मयूर पर सवार होकर तीर्थों की यात्रा करने लगे, लेकिन गणेशजी मूषक पर सवार होने के कारण यह नहीं कर सके। उन्होंने माता-पिता की परिक्रमा करके उनकी स्तुति की। इसे देखकर पार्वती ने उन्हें दिव्य मोदक(Modak) प्रदान किया और प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद भी दिया। तभी से मोदक बप्पा का सबसे प्रिय भोग बन गया।
मोदक से जुड़ी अन्य कथा
एक पौराणिक प्रसंग में बताया गया है कि परशुरामजी के वार से गणेशजी का एक दांत टूट गया था। इस कारण वे कठोर भोजन नहीं खा पाते थे। तब उनके लिए मुलायम मोदक बनाए गए। इन्हें खाकर वे प्रसन्न हुए और तब से मोदक को ही प्रिय भोग स्वीकार किया। इसी कारण उन्हें एकदंत नाम से भी जाना जाता है।
मोदक का स्वरूप भी आध्यात्मिक संदेश देता है। इसका ऊपरी हिस्सा ब्रह्मज्ञान का प्रतीक है जबकि भीतर का मीठा गुड़ और नारियल ज्ञान और आनंद का द्योतक माना जाता है। इसलिए बप्पा की आराधना में मोदक को शामिल करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
गणेशजी को मोदक का भोग क्यों चढ़ाया जाता है?
कथा के अनुसार, माता पार्वती ने गणेशजी को दिव्य मोदक प्रदान किया और उन्हें प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया। तभी से बप्पा की पूजा मोदक के बिना अधूरी मानी जाती है।
मोदक के स्वरूप का क्या महत्व है?
मोदक का ऊपरी शंकु ब्रह्मज्ञान का प्रतीक है और अंदर का मीठा हिस्सा ज्ञान व आनंद का संकेत देता है। इसे खाने से प्रसन्नता और शांति की अनुभूति होती है।
क्या गणेशजी का एक दांत टूटने का संबंध मोदक से है?
हाँ, परशुरामजी के वार से उनका एक दांत टूट गया था, जिससे वे मुलायम भोजन ही खा सकते थे। तभी उनके लिए मोदक तैयार किए गए और यही उनका प्रिय भोग बन गया।
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