विधि और मंत्रों से पूरी होगी आराधना
गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे भारत(India) में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन गणेश जी की विधिवत स्थापना और पूजा(Puja) का विशेष महत्व होता है। सही विधि और वैदिक मंत्रों के साथ की गई पूजा(Puja) से बप्पा का आशीर्वाद मिलता है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। यही कारण है कि गणेश चतुर्थी पर गणेश स्थापना की सही पूजा विधि जानना आवश्यक माना जाता है।
गणेश स्थापना की प्रारंभिक विधि
बाप्पा स्थापना से पहले कलश तैयार करना जरूरी है। इसके लिए कलश में जल भरें और लाल कपड़े से ढके नारियल को उस पर मौली बांधकर रखें। पंच पल्लव भी कलश में स्थापित करें और दीपक जलाकर वरुण देव(Varun Dev) का आह्वान करें। पूजा की शुरुआत पवित्रता मंत्रों से होती है, जिसमें जल को छिड़ककर शुद्धि की जाती है।
इसके बाद मंडल में अक्षत रखकर भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान की जाती है। संकल्प लेते समय पूजा सामग्री हाथ में लेकर मंत्रोच्चार के साथ गणेश व्रत का प्रण किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद ही पूजन विधि आगे बढ़ती है।
मंत्रोच्चार और पूजन सामग्री अर्पण
बाप्पा का ध्यान करते हुए ‘गजाननं भूतगणादि सेवितं…’ मंत्र का जप कर पुष्प अर्पित करें। इसके बाद ‘ओम गं गणपतये इहागच्छ इह सुप्रतिष्ठो भव’ मंत्र के साथ अक्षत चढ़ाएं। चंदन और सिंदूर से तिलक कर ‘इदम् रक्त चंदनम् लेपनम्’ और ‘इदं सिन्दूराभरणं लेपनम्’ मंत्र बोले जाते हैं।
गणेश जी को दूर्वा, बिल्वपत्र, लाल वस्त्र और विभिन्न नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं। विशेष रूप से मोदक का भोग लगाना अनिवार्य माना गया है क्योंकि यह उनका प्रिय व्यंजन है। अंत में गणेश चालीसा, आरती और प्रसाद वितरण के साथ स्थापना पूजा पूर्ण होती है।
गणेश स्थापना के लिए कलश क्यों आवश्यक है?
कलश में पंच पल्लव और नारियल रखने से पवित्रता आती है और इसे शुभता का प्रतीक माना गया है। यह स्थापना प्रक्रिया का पहला चरण होता है।
गणेश चतुर्थी पर कौन सा मुख्य मंत्र बोला जाता है?
‘ओम गं गणपतये नमः’ मुख्य मंत्र है, जो स्थापना से लेकर आरती तक हर चरण में उच्चारित किया जाता है। इससे पूजा(Puja) का फल कई गुना बढ़ जाता है।
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