Ashtavinayak : गणेश चतुर्थी का पर्व भगवान श्रीगणेश की पूजा-अर्चना के लिए सबसे पावन दिन माना जाता है। इस दिन यदि कोई श्रद्धालु अष्टविनायक (Ashtavinayak) के दर्शन करता है, तो ऐसा माना जाता है कि उसके भाग्य में शुभ परिवर्तन आ सकता है और जीवन की बाधाएं दूर हो सकती हैं।(Ganesh Chaturthi) गणेश चतुर्थी का महोत्सव साल 2025 में 27 अगस्त से शुरू होगा। इस दौरान गणपति के भक्त 10 दिनों तक उत्सव मनाते हैं जिसे गणेशात्सव के नाम से भी जाना जाता है। भक्त इस दौरान घर में भी गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित करते हैं।
क्या हैं अष्टविनायक?
‘अष्टविनायक’ Ashtavinayak का अर्थ है – श्रीगणेश के आठ प्रमुख स्वरूप। ये आठों मंदिर महाराष्ट्र में स्थित हैं और प्रत्येक मंदिर की अपनी अलग कथा, महिमा, और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है।
अष्टविनायक के 8 पवित्र मंदिर
- मयूरेश्वर (मोरगांव) – Pune
- अष्टविनायक यात्रा की शुरुआत यहीं से मानी जाती है।
- यहां गणेश जी का रूप मयूर पर सवार है।
- सिद्धिविनायक (सिद्धटेक) – Ahmednagar
- यह मंदिर ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित माना जाता है।
- बल्लालेश्वर (पाली) – Raigad
- एकमात्र अष्टविनायक मंदिर जिसका नाम भक्त के नाम पर पड़ा।
- वरदविनायक (महड) – Raigad
- इस मंदिर में श्रद्धालु स्वयं गर्भगृह में जाकर पूजा कर सकते हैं।
- चिंतामणि (थेवूर) – Pune
- कहा जाता है कि यहां गणेश जी ने एक राक्षस से ऋषियों की रक्षा की थी।
- गिरिजात्मज (लेण्याद्री) – Pune
- यह एक गुफा मंदिर है, जहां गणेश जी का बालरूप पूजित है।
- विघ्नहर (ओझर) – Pune
- यहां गणेश जी को विघ्नों का नाशक माना जाता है।
- महागणपति (रांजणगांव) – Pune
- इस स्थान पर गणेश जी ने सिंधुरासुर का वध किया था।
कैसे करें अष्टविनायक यात्रा?
- यात्रा की शुरुआत मोरगांव से होती है और अंत भी वहीं पर करना शुभ माना जाता है।
- यह यात्रा आमतौर पर 3-5 दिनों में पूरी की जा सकती है।
- मंदिरों में भीड़ से बचने के लिए सुबह जल्दी यात्रा शुरू करें।
- धार्मिक भावना के साथ पूरे नियम और संयम से यात्रा करें।
गणेश चतुर्थी पर विशेष फल
गणेश चतुर्थी के दिन अष्टविनायक के दर्शन करने से:
- जीवन में आ रही रुकावटें दूर होती हैं।
- कार्यसिद्धि और समृद्धि प्राप्त होती है।
- मानसिक शांति और आत्मिक बल की प्राप्ति होती है।
अष्टविनायक क्या हैं?
‘8 विनायक’ से आपका तात्पर्य महाराष्ट्र में स्थित भगवान गणेश के आठ स्वयंभू मंदिरों की ‘अष्टविनायक यात्रा’ से है, जो पुणे के आसपास स्थित हैं. इन आठ मंदिरों में आठ अलग-अलग विनायक स्वरूपों की मूर्तियाँ हैं, जिनमें मोरगाँव के मयूरेश्वर, सिद्धटेक के सिद्धिविनायक, पाली के बल्लालेश्वर, महाड के वरदविनायक, थ्यूर के चिंतामणि, लेन्याद्री के गिरिजत्मज, ओज़र के विघ्नहर और रंजनगांव के महागणपति शामिल हैं.
अष्टविनायक यात्रा का क्रम क्या है?
अष्टविनायक का पारंपरिक और शास्त्रोक्त क्रम मोरगाँव के श्री मयूरेश्वर से शुरू होता है, जिसके बाद सिद्धटेक, पाली, महाड, थेउर, लेन्याद्रि, ओझर और अंत में रंजनगांव के श्री महागणपति में समाप्त होता है। यह क्रम पुणे और उसके आसपास स्थित आठ स्वयंभू गणेश मंदिरों की तीर्थयात्रा के लिए निर्धारित है, जिससे सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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