संतान की लंबी उम्र का वरदान
हिन्दू धर्म में संतान सप्तमी(Santan Saptami) व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत श्रावण या भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना के लिए यह व्रत करती हैं। पूजा में भगवान विष्णु(Vishnu), माता संतान लक्ष्मी(Santana Lakshmi) और सप्तमी देवी की आराधना की जाती है।
व्रत का महत्व और पूजन विधि
संतान सप्तमी(Santan Saptami) व्रत करने से संतान की रक्षा होती है और उनका भविष्य उज्ज्वल बनता है। जो दंपति संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, उन्हें इस व्रत के पुण्य से संतान सुख मिलता है। वहीं माताओं को विद्वान और आज्ञाकारी संतान की प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इस दिन पूजा के लिए लाल वस्त्र, पुष्प, दीपक, धूप, फल, दूध, दही और पंचामृत का प्रयोग किया जाता है। घर की शुद्धि कर भगवान विष्णु, माता संतान लक्ष्मी और सप्तमी देवी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके बाद व्रत कथा का पाठ और आरती की जाती है।
पालन करने योग्य सावधानियां
व्रत के दिन सात्विकता और शुद्धता का पालन करना जरूरी है। मांसाहार, शराब, प्याज और लहसुन का सेवन वर्जित है। इस दिन मन और वाणी को संयमित रखकर क्रोध, ईर्ष्या और निंदा से बचना चाहिए।
संतान सप्तमी व्रत केवल पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका मूल उद्देश्य संतान के कल्याण और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रार्थना करना है। अंत में जरूरतमंदों, ब्राह्मणों और कन्याओं को भोजन, वस्त्र और दक्षिणा दान करना शुभ माना जाता है।
संतान सप्तमी व्रत कब रखा जाता है?
यह व्रत श्रावण या भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है और इसका विशेष महत्व माना गया है।
इस व्रत से संतान को क्या लाभ मिलता है?
संतान सप्तमी व्रत करने से संतान की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही संतान की रक्षा भी सुनिश्चित होती है।
व्रत के दिन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
व्रत में सात्विकता और शुद्धता का पालन अनिवार्य है। मांसाहार और नकारात्मक भावनाओं से बचते हुए शांत वातावरण बनाए रखना चाहिए।
अन्य पढ़े: