डीआईआई और एफआईआई: भारतीय शेयर बाजार में ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिला है। मार्च 2025 के आंकड़ों के अनुसार, घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) की बाजार में भागीदारी17.62% तक पहुंच गई है, जो अब तक की सबसे ऊंची भागीदारी है। वहीं, विदेशी संस्थागत निवेशकों की भागीदारी घटकर 17.22% पर आ गई, जो 12 वर्ष का बमुश्किल स्तर है।
एसआईपी के जरिए म्यूचुअल फंड्स का योगदान बढ़ा
इस बदलाव के पीछे सबसे बड़ा कारण है म्यूचुअल फंड्स में तेजी से बढ़ता निवेश, खासकर व्यवस्थित निवेश योजना (SIP) के जरिए। जनवरी से मार्च 2025 की तिमाही में एसआईपी के माध्यम से 1.16 लाख करोड़ पैसो का रिकॉर्ड निवेश हुआ। इससे पारस्परिक संपत्ति की भागीदारी भी बढ़कर 10% के पार पहुंच गई है।

एफआईआई का नेट आउटफ्लो और घरेलू स्थिरता
जहां एक तरफ घरेलू निवेशकों ने दम दिखाया, वहीं दूसरी ओर एफआईआई ने Q4 में 1.29 लाख करोड़ पैसो को शेयर बाजार से बाहर निकाले। हालांकि उन्होंने प्राइमरी मार्केट में 13,000 करोड़ की मामूली खरीद की, लेकिन नेट आउटफ्लो 1.16 लाख करोड़ रहा। इसके पीछे वजह रही अमेरिका में बढ़ती बॉन्ड यील्ड्स और मजबूत डॉलर, जिसने विदेशी निवेशकों को मनमोहक किया।
कम अस्थिरता की ओर बढ़ता भारतीय बाजार
इस बदलाव का लाभ सीधे तौर पर भारतीय बाजार की कम अस्थिरता (Less Volatility) के रूप में देखा जा रहा है। जब एफआईआई शेयर बेचते हैं, तो अब डीआईआई उनके मुकाबले ग्राहक बनकर बाजार को स्थिर बनाए रखते हैं। इससे बाजार में बड़ी ह्रास की संभावना कम हो जाती है।
विदेशी पूंजी पर निर्भरता में गिरावट
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह ट्रेंड जारी रहा, तो इंडिया को विदेशी पूंजी पर निर्भरता कम करनी पड़ेगी। मजबूत घरेलू निवेश का आधार दीर्घावधि स्थिरता लाएगा। और जब भविष्य में एफआईआई वापसी करेंगे, तो डीआईआई और एफआईआई की यह संयुक्त ताकत भारतीय बाजार को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकती है।