पूर्व DRDO वैज्ञानिक जिन्होंने अपने 34 वर्षों का करियर ‘आकाश’ मिसाइल सिस्टम के विकास में समर्पित किया

By digital | Updated: May 18, 2025 • 3:51 AM

हैदराबाद DRDO की प्रमुख परियोजनाओं का केंद्र रहा है, और यहां विकसित कई रक्षा उत्पादों ने हालिया ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान के साथ टकराव में निर्णायक भूमिका निभाई है। उन्हीं में से एक है ‘आकाश’, कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल, जिसने उस तनावपूर्ण समय में सीमा पार से दागे गए ड्रोन और मिसाइलों के खिलाफ रक्षा का मजबूत स्तंभ बनकर उभरी।

आकाश ने अन्य देशों को चौंकाया

“आकाश, जिसे पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से शून्य से विकसित किया गया, को पहली बार युद्ध क्षेत्र में उपयोग किया गया और यह अत्यंत प्रभावशाली और सक्षम साबित हुआ। यह स्वचालित मिसाइल प्रणाली अन्य देशों को चौंका देने वाली रही,”
— गड्डमणुगु चंद्रमौली, पूर्व परियोजना निदेशक

यह मिसाइल मोबाइल प्लेटफॉर्म से दागी जा सकती है और एक साथ कई लक्ष्यों — जैसे कि लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, UAV, सबसोनिक क्रूज़ मिसाइलें और स्मार्ट बम — को निष्क्रिय करने में सक्षम है। यह सुपरसोनिक गति से चलने वाली मिसाइल हर ऊंचाई और आकार के लक्ष्य को भेद सकती है।

डा. एपीजे अब्दुल कलाम थे प्रेरणाश्रोत

श्री चंद्रमौली, जो तेलंगाना के खम्मम जिले के मधीरा के रहने वाले हैं, ने NIT वारंगल से मैकेनिकल इंजीनियरिंग और IIT दिल्ली से M.Tech किया। उन्हें DRDO की Integrated Guided Missile Development Programme के तहत ‘आकाश’ प्रोजेक्ट में प्रारंभ से ही शामिल किया गया, जिसका नेतृत्व डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम कर रहे थे।

“कलाम कहा करते थे — ‘पहले तकनीक विकसित करो, बाकी सब अपने आप होगा।’
डिजाइन से लेकर ग्राउंड-बेस्ड रडार सिस्टम, प्रणोदन (propulsion) और हथियार प्रणाली तक, यह एक 14 वर्षीय सतत प्रयास था। हमने कई विफलताओं का सामना किया, लेकिन हमारी सेना को कुछ देने की भावना ही हमारी प्रेरणा थी।”

“चंद्रमौली बताते हैं कि बहुत कम लोगों को विश्वास था कि हम एक ऐसी प्रभावी मिसाइल बना सकेंगे, जो देश की रक्षा प्रणाली की रीढ़ बन जाए। हर कदम पर हमें संदेह और जांच का सामना करना पड़ा, लेकिन हमने धैर्य और दृढ़ता नहीं छोड़ी,” — चंद्रमौली

1983 से 2018 तक DRDL–DRDO में ‘प्रोजेक्ट आकाश’ के कोर सदस्य के रूप में, उन्होंने विभिन्न संस्थानों की टीमों का नेतृत्व किया और डिजाइन, विकास, परीक्षण और उपयोगकर्ता परीक्षणों को सफलतापूर्वक संपन्न कराया।

इसकी पहली सफल उड़ान 1994 मेंहुआ।अंतिम परीक्षण: 2006–07 तक तथा औपचारिक रूप से 2015 में भारतीय सेना और वायुसेना दोनों में शामिलकिया गया।

इससे भारत, रूस के बाद दुनिया का दूसरा देश बना जिसने सॉलिड रामजेट प्रणोदन प्रणाली पर आधारित सुपरसोनिक मिसाइल को स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित किया।

चन्द्रमौली कहते हैं“कलाम और अन्य नेताओं ने एक ऐसा वातावरण बनाया जिसमें कोई अहंकार नहीं था, केवल लक्ष्य थे।
मैंने कलाम, प्रह्लाद राम राव, आर. आर. पन्यम, जी. एन. राव, अजीत चौधरी जैसे अनेक वैज्ञानिकों से बहुत कुछ सीखा। टीमवर्क, पारदर्शिता और आपसी सहयोग ने हमें हर बाधा पार करने में सक्षम बनाया।”

2011 में प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनने के बाद, उन्होंने ‘आकाश’ के उत्पादन, आपूर्ति और सैन्य तैनाती की प्रक्रिया को व्यवस्थित किया। उन्होंने 13 DRDO लैब्स, 9 रक्षा उत्पादन इकाइयों और 5 ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों के साथ समन्वय करते हुए जटिल तकनीकों का स्थानांतरण भारतीय उद्योगों को सुनिश्चित कराया।

वर्तमान में, श्री चंद्रमौली ‘प्रोजेक्ट आकाश’ पर एक पुस्तक लिखने की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें इस ऐतिहासिक परियोजना की यात्रा का दस्तावेजीकरण किया जाएगा।

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