नई दिल्ली, 6 जून 2025: एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स की सैटेलाइट इंटरनेट सेवा स्टारलिंक को भारत के दूरसंचार विभाग (DoT) से ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशन बाय सैटेलाइट (GMPCS) लाइसेंस प्राप्त हो गया है। यह लाइसेंस स्टारलिंक को भारत में हाई-स्पीड सैटेलाइट इंटरनेट सेवाएं शुरू करने की अनुमति देता है। स्टारलिंक भारत में यह लाइसेंस पाने वाली तीसरी कंपनी है, इससे पहले भारती समूह की वनवेब और रिलायंस जियो की जियो सैटेलाइट कम्युनिकेशंस को यह मंजूरी मिल चुकी है।
मुख्य तथ्य:
लाइसेंस प्रक्रिया: स्टारलिंक ने 2022 में GMPCS लाइसेंस के लिए आवेदन किया था। सुरक्षा और डेटा गोपनीयता नियमों को लेकर कई दौर की चर्चा के बाद, कंपनी ने DoT की शर्तों को पूरा किया, जिसमें भारत में डेटा स्टोरेज, वैध अवरोधन तंत्र, और स्थानीय कमांड-एंड-कंट्रोल सेंटर की स्थापना शामिल है।
यूज एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि एलन मस्क की स्टारलिंक को भारत में सैटकॉम सेवाओं के लिए लाइसेंस मिल गया है. स्टारलिंक दूरसंचार विभाग (DoT) से लाइसेंस हासिल करने वाली तीसरी कंपनी है. DoT के सूत्रों ने पुष्टि की है कि स्टारलिंक को वास्तव में लाइसेंस मिल गया है. बताया जा रहा है कि कंपनी को इसके लिए आवेदन करने के 15-20 दिनों में ट्रायल स्पेक्ट्रम दिया जाएगा.
IN-SPACe मंजूरी:
GMPCS लाइसेंस के बाद, स्टारलिंक को भारतीय अंतरिक्ष नियामक संस्था IN-SPACe से अंतिम मंजूरी की आवश्यकता है, जिसके जल्द मिलने की उम्मीद है।
सेवा शुरूआत: स्टारलिंक शुरुआत में 600-700 Gbps बैंडविड्थ के साथ चुनिंदा शहरी क्षेत्रों में सेवाएं शुरू करेगा, जो 30,000-50,000 उपयोगकर्ताओं को कवर करेगा। 2027 तक बैंडविड्थ 3 Tbps तक बढ़ाने का लक्ष्य है।
मूल्य और स्पीड: मासिक योजनाएं लगभग ₹850 ($10) से शुरू हो सकती हैं, जिसमें असीमित डेटा शामिल हो सकता है। डाउनलोड स्पीड 25-220 Mbps और लेटेंसी 25-50 मिलीसेकंड होगी।
प्रतिस्पर्धी परिदृश्य:
स्टारलिंक का मुकाबला जियो, एयरटेल, और वनवेब से होगा। जियो और एयरटेल ने स्टारलिंक के साथ साझेदारी की है ताकि उनकी चैनलों के माध्यम से सेवाएं वितरित की जा सकें।
ग्रामीण कनेक्टिविटी: यह सेवा ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में इंटरनेट पहुंच बढ़ाएगी, जहां फाइबर-ऑप्टिक नेटवर्क सीमित हैं।
स्पेक्ट्रम विवाद:
जियो और एयरटेल ने स्पेक्ट्रम नीलामी की मांग की है, जबकि स्टारलिंक रेवेन्यू-शेयरिंग मॉडल का समर्थन करता है। सरकार ने अभी स्पेक्ट्रम नियमों को अंतिम रूप नहीं दिया है।