English in India अमित शाह बोले- “अब अंग्रेज़ी बोलने वालों को आएगी शर्म”
English in India को लेकर देश में एक बार फिर बहस तेज हो गई है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में एक सार्वजनिक मंच से दिए गए अपने बयान में कहा कि “भारत में जो अंग्रेज़ी बोलते हैं, उन्हें जल्द ही शर्म महसूस होगी।” उनके इस बयान से हिंदी बनाम अंग्रेज़ी की बहस को नई हवा मिल गई है।
अमित शाह ने क्या कहा?
- “भारत की पहचान भारतीय भाषाओं से है, अंग्रेज़ी थोपना संस्कृति का अपमान है।”
- “जल्द ही समय आएगा जब लोग अंग्रेज़ी बोलने में गर्व नहीं, शर्म महसूस करेंगे।”
- “हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को रोज़मर्रा की भाषा बनाना होगा।”

English in India पर क्या है सरकार का रुख?
- केंद्र सरकार लंबे समय से भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार पर जोर दे रही है।
- विभिन्न मंत्रालयों और परीक्षाओं में स्थानीय भाषाओं में काम शुरू किया गया है।
- नई शिक्षा नीति (NEP 2020) में भी मातृभाषा में पढ़ाई को प्राथमिकता दी गई है।
इस बयान के बाद क्या उठे सवाल?
- क्या अंग्रेज़ी के बिना वैश्विक स्तर पर भारत पिछड़ जाएगा?
- क्या यह भाषाई विविधता को प्रभावित करेगा?
- क्या हिंदी थोपे जाने की आशंका बढ़ेगी?
English in India: अब तक की स्थिति
- अंग्रेज़ी अभी भी भारत की दूसरी आधिकारिक भाषा है।
- उच्च शिक्षा, न्यायपालिका, विज्ञान, तकनीक और कॉर्पोरेट सेक्टर में इसका बोलबाला।
- लेकिन ग्रामीण और गैर-अंग्रेज़ी भाषी वर्ग अब भी इससे वंचित हैं।

हिंदी और अन्य भाषाओं को लेकर अमित शाह का रुख
- हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने की वकालत पहले भी कर चुके हैं।
- भारत की संस्कृति, सोच और संवाद को स्थानीय भाषाओं में देखने की इच्छा जताई।
- तकनीक और सोशल मीडिया की मदद से भारतीय भाषाओं का विस्तार संभव बताया।
विपक्ष और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
- विपक्षी दलों ने इसे सांस्कृतिक जबरदस्ती बताया।
- भाषाविदों का मानना है कि बहुभाषी राष्ट्र में किसी एक भाषा को थोपना व्यावहारिक नहीं।
- कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों को साथ लेकर चलना ज़रूरी है।
English in India पर अमित शाह का यह बयान निश्चित तौर पर एक नई बहस को जन्म देगा। जहां एक ओर यह भाषायी गौरव और आत्मनिर्भरता की बात करता है, वहीं दूसरी ओर इसकी राजनीतिक और सामाजिक व्याख्या भी जरूरी हो जाती है। अब देखना यह है कि सरकार इस विचार को नीति और व्यवस्था में कैसे बदलती है और क्या भारत अंग्रेज़ी पर अपनी निर्भरता को वाकई कम कर पाएगा।