प्राकृतिक मिट्टी से बनी पर्यावरण अनुकूल मूर्तियों का उपयोग शामिल
हैदराबाद। पर्यावरण के अनुकूल गणेश चतुर्थी उत्सव (Ganesh Chaturthi Celebrations) सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने संशोधित दिशानिर्देश जारी किए हैं। तेलंगाना प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीजीपीसीबी) ने एक विज्ञप्ति में कहा कि प्रमुख निर्देशों में प्लास्टर ऑफ पेरिस या अन्य गैर-जैवनिम्नीकरणीय सामग्रियों के बजाय प्राकृतिक मिट्टी से बनी पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियों का उपयोग शामिल है। जल निकायों के रासायनिक प्रदूषण को कम करने के लिए मूर्तियों को जैवनिम्नीकरणीय और जैविक रंगों, जैसे चंदन, हल्दी और गेरूआ, से सजाया जाना चाहिए।
अपशिष्ट जल को फिटकरी या चूने से पूर्व उपचारित करें
स्थानीय अधिकारियों को मूर्ति विसर्जन के लिए विशेष रूप से कृत्रिम तालाब या टैंक बनाने और उनका रखरखाव करने के लिए कहा गया है। पर्यावरणीय खतरों से बचने के लिए विसर्जन तालाबों में जमा सभी अपशिष्ट जल को फिटकरी या चूने से पूर्व-उपचारित किया जाना चाहिए। विसर्जन प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न ठोस अपशिष्ट को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार एकत्रित और निपटाया जाना चाहिए। नागरिकों, मिट्टी की मूर्ति बनाने वालों, पूजा पंडालों और विक्रेताओं से दिशानिर्देशों का पालन करने और पर्यावरण के प्रति जागरूक समारोहों में भाग लेने का आग्रह किया गया है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि टीजीपीसीबी और सीपीसीबी स्थानीय निकायों और प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय में इन दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन की निगरानी करेंगे।

गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन क्यों किया जाता है?
परंपरागत मान्यता के अनुसार गणेश जी को विशेष रूप से धरती पर आमंत्रित किया जाता है, और कुछ दिनों तक पूजा के बाद उन्हें जल में विसर्जित कर वापस कैलाश भेजा जाता है। यह प्रतीकात्मक विदाई है, जो जीवन की अस्थायी प्रकृति को दर्शाती है और नवचेतना को प्रेरित करती है।
गणपति विसर्जन की कहानी क्या है?
पुराणों के अनुसार गणेश जी पृथ्वी पर भक्तों के कष्ट हरने आते हैं। गणेश चतुर्थी पर स्थापित प्रतिमा को पूजन के बाद अनंत चतुर्दशी पर जल में विसर्जित किया जाता है, ताकि वे जल तत्व में विलीन होकर ब्रह्मांड से एकरूप हो जाएं और वापस अपने लोक लौट सकें।
महाराष्ट्र में गणेश विसर्जन क्यों होता है?
छत्रपति शिवाजी महाराज और बाद में लोकमान्य तिलक ने गणेश उत्सव को सामाजिक एकता और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक बनाया। विसर्जन एक सामाजिक समारोह बन गया, जिसमें पूरे महाराष्ट्र में भक्त मिलकर भगवान गणेश को विदाई देते हैं। यह परंपरा आज भी उत्साह और श्रद्धा से निभाई जाती है।
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