Ganga basin में 23 वर्षों की सबसे कम बर्फबारी दर्ज: पर्यावरणीय खतरे की घंटी?
एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, Ganga basin क्षेत्र में इस वर्ष पिछले 23 वर्षों में सबसे कम बर्फबारी दर्ज की गई है। यह गिरावट सिर्फ एक मौसमीय घटना नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट संकेत मानी जा रही है।
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बर्फबारी में इस गिरावट का प्रभाव गंगा नदी के जल प्रवाह, कृषि, और पीने के पानी की उपलब्धता पर पड़ सकता है। विशेषज्ञ इसे आने वाले वर्षों में और गंभीर मान रहे हैं।
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मुख्य निष्कर्ष (Bullet Points):
- Ganga basin में 2024-25 सर्दियों के मौसम में 23 वर्षों की सबसे कम बर्फबारी दर्ज की गई।
- जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में भी बर्फ की परतें सामान्य से 30-40% तक कम पाई गईं।
- ISRO और IMD की सैटेलाइट रिपोर्ट में यह गिरावट दर्ज की गई है।
- बर्फबारी की यह कमी गंगा और उसकी सहायक नदियों के जलस्तर को प्रभावित कर सकती है।
- ग्लेशियरों के समय से पहले पिघलने का खतरा बढ़ गया है।

बर्फबारी में कमी के संभावित दुष्प्रभाव:
- जल संकट: ग्रीष्मकाल में गंगा का प्रवाह मुख्य रूप से बर्फ पिघलने पर निर्भर होता है।
- कृषि पर असर: जल की कमी से रबी फसलों की सिंचाई प्रभावित हो सकती है।
- बिजली उत्पादन: जल विद्युत परियोजनाओं के लिए आवश्यक प्रवाह में कमी आएगी।
- पर्यावरणीय असंतुलन: तापमान असमानता और पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत प्रभाव।
वैज्ञानिक क्या कहते हैं?
- पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, यह गिरावट सिर्फ प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि मानवजनित गतिविधियों और ग्लोबल वॉर्मिंग से जुड़ी है।
- बर्फबारी का यह ट्रेंड लंबे समय तक जारी रहा, तो भविष्य में Ganga basin में बड़े पैमाने पर सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

क्या हो सकते हैं समाधान?
- जल संरक्षण तकनीकों को अपनाना।
- वाटर रिचार्ज जोन विकसित करना।
- ग्लेशियर निगरानी प्रणाली को मजबूत करना।
- पुनर्वनीकरण और वन संरक्षण पर ज़ोर देना।
Ganga basin में रिकॉर्ड स्तर पर कम हुई बर्फबारी सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक चेतावनी है। अगर अब भी हमने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को गंभीरता से नहीं लिया, तो भविष्य में पानी का संकट और खाद्य असुरक्षा जैसी समस्याएं आम हो सकती हैं।