West Bengal: ‘लंबित विधेयकों पर चर्चा के लिए अफसरों को नहीं बुला सकते राज्यपाल’

By digital@vaartha.com | Updated: April 11, 2025 • 6:28 AM

राज्यपाल सीवी आनंद बोस कहा था कि उन्होंने अपने पास लंबित कुछ विधेयकों को मंजूरी देने से पहले विभिन्न विभागों के अधिकारियों से बैठक करने की मांग की है। इस पर संसदीय कार्य मंत्री सोवनदेब चट्टोपाध्याय ने कहा कि राज्यपाल के पास लंबित विधेयकों पर चर्चा के लिए अधिकारियों को बुलाने का कोई अधिकार नहीं है।

कोलकाता तमिलनाडु के बाद अब पश्चिम बंगाल में विधेयकों को रोके जाने पर विवाद खड़ा हो गया है। पश्चिम बंगाल के संसदीय कार्य मंत्री सोवनदेब चट्टोपाध्याय ने विधेयकों को रोकने पर गर्वनर सीवी आनंद बोस को घेरा है। 

संसदीय कार्य मंत्री सोवनदेब चट्टोपाध्याय ने कहा कि राज्यपाल के पास लंबित विधेयकों पर चर्चा के लिए अधिकारियों को बुलाने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि संविधान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राज्यपाल के पास विधेयकों को अनिश्चित काल तक रोके रखने का अधिकार नहीं है। अगर किसी विधेयक को लेकर कोई कानूनी चिंता है तो राज्यपाल सरकार को लिख सकते हैं। लेकिन संविधान में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि वह अधिकारियों को बुला सकते हैं या चर्चा कर सकते हैं। मैंने संविधान को कई बार पढ़ा है।

गुरुवार को राज्यपाल सीवी आनंद बोस कहा था कि उन्होंने अपने पास लंबित कुछ विधेयकों को मंजूरी देने से पहले विभिन्न विभागों के अधिकारियों से बैठक करने की मांग की है। राजभवन ने कहा कि राज्यपाल ने 11 विधेयक राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजे हैं। उन्होंने कई अन्य विधेयकों पर राज्य सरकार से अतिरिक्त जानकारी मांगी है, मगर उचित जवाब नहीं मिले हैं।

पिछले दिनों तमिलनाडु में राज्यपाल द्वारा विधेयक को रोके जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल का विधेयकों को रोकना मनमाना और अवैध है। इसे लेकर बंगाल विधानसभा के स्पीकर बिमन बनर्जी ने कहा कि 2016 से पश्चिम बंगाल विधानसभा द्वारा पारित 23 विधेयकों को राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिली है। मुझे उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बंगाल के राज्यपाल भी ऐसा ही करेंगे।

तमिलनाडु मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

तमिलनाडु मामले में ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों की ओर से निर्वाचित सरकारों को दरकिनार करने कोशिश पर कड़ा एतराज जताते हुए कहा था कि उन्हें राजनीतिक कारणों से राज्य विधानसभाओं पर नियंत्रण नहीं रखना चाहिए। राज्यपाल को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे राज्य विधानमंडल के काम में बाधा या दबाव न डालें, क्योंकि इससे लोगों की अपेक्षाएं बाधित हो सकती हैं। उन्हें नागरिकों के प्रति जवाबदेह निर्वाचित सरकार का भी सम्मान करना चाहिए। 

तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जाहिर की और इसे ऐतिहासिक बताया। डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा कि हम सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले का स्वागत करते हैं। इसमें राज्य विधानसभाओं के विधायी अधिकारों की पुष्टि की गई है और विपक्ष शासित राज्यों में प्रगतिशील विधायी सुधारों को रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत राज्यपालों की प्रवृत्ति पर रोक लगाई गई है।

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