Guava Farmer : संघर्ष से समृद्धि तक

अमरूद

फरीदाबाद के अटाली गांव में किसान पप्पू ने 3 एकड़ में अमरूद की खेती शुरू कर आजीविका की राह बनाई. जानिए उनकी मेहनत और उम्मीदों से भरी खेती की कहानी.

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विकास झा/फरीदाबाद: खेती केवल मिट्टी से फसल उगाने का ही नाम नहीं, बल्कि उम्मीदों, धैर्य और मेहनत से जीवन को संवारने की कहानी भी होती है. ऐसी ही एक कहानी फरीदाबाद के अटाली गांव में रहने वाले 45 वर्षीय किसान पप्पू की है, जिन्होंने अपनी आजीविका का आधार अमरूद के बागान को बनाया है.

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अमरूद

हाथरस से हरियाणा तक मेहनत की राह

पप्पू मूल रूप से उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के निवासी हैं. बीते दो दशक से वे फरीदाबाद में रह रहे हैं और खेती के जरिए जीवन यापन कर रहे हैं. उन्होंने अटाली गांव में 3 एकड़ जमीन सालाना डेढ़ लाख रुपये में पट्टे पर लेकर अमरूद की बागवानी शुरू की है. इस जमीन पर उन्होंने लगभग 250 पौधे लगाए हैं.

अमरूद का सपना

बागान में पप्पू ने इलाहाबादी, देसी और पैगन किस्मों के पौधे लगाए हैं. इलाहाबादी अमरूद अपनी मिठास और सुगंध के कारण बाज़ार में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है. पप्पू बताते हैं कि इन पौधों को तैयार होकर फल देने लायक बनने में लगभग चार साल लगते हैं, लेकिन जब फसल आती है तो मेहनत का फल भी मीठा होता है.

भविष्य की एक आस

अपने तीन एकड़ के इस बागान से पप्पू को सिर्फ फसल नहीं, भविष्य की उम्मीद मिलती है. वे कहते हैं, “अगर दाम सही मिलें, तो बच्चों की पढ़ाई से लेकर घर की जरूरतें सब पूरी हो सकती हैं. खेती में दिल लगाया है, अब भगवान से दुआ है कि मेहनत रंग लाए.”

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