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Sliver Hallmarking: 1 सितंबर से चांदी के जेवरों पर होगी हॉलमार्किंग

Surekha Bhosle
Surekha Bhosle
Sliver Hallmarking: 1 सितंबर से चांदी के जेवरों पर होगी हॉलमार्किंग

बीआईएस ने जारी किया आदेश

Sliver Hallmarking: नकली चांदी बेचने पर लगाम लग सकेगी- सोने (Gold) के बाद अब सरकार सिल्वर ज्वेलरी की भी हॉलमार्किंग (Sliver Hallmarking) लागू करने की तैयारी कर रही है। 1 सितंबर से स्वैच्छिक तौर पर इसे लागू किया जाएगा। सोने की तरह ही यह 6 ग्रेड चांदी की ज्वेलरी पर लागू होगी। चांदी पर 6 डिजिट वाला HUID हॉलमार्किंग लागू होगी

हॉलमार्किंग से शुद्धता की गारंटी मिलती है। हॉलमार्क साबित करता है कि ज्वेलरी में दी गई चांदी कितनी शुद्ध है। इससे ग्राहक का भरोसा बढ़ता है। सरकार ने 1 अप्रैल 2024 से गोल्ड और उसके आभूषणों पर अनिवार्य से रूप से हॉलमार्किंग लागू की थी।

सवाल 1: ये हॉलमार्किंग क्या है?

Sliver Hallmarking: हॉलमार्किंग एक तरह का सरकारी सर्टिफिकेट है, जो ये गारंटी देता है कि आपकी चांदी या सोने की ज्वेलरी कितनी शुद्ध है। जैसे, सोने में 22 कैरेट या 18 कैरेट का हॉलमार्क होता है, वैसे ही अब चांदी पर भी एक खास निशान होगा, जो बताएगा कि उसमें चांदी की शुद्धता कितनी है। इसे भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) चेक करता है, ताकि आपको नकली या मिलावटी माल न मिले।

चांदी की ज्वेलरी पर ये हॉलमार्किंग कब से शुरू होगी?

Sliver Hallmarking

1 सितंबर 2025 से ये नियम लागू हो सकता है। शुरुआत में ये स्वैच्छिक (वॉलंटरी) होगा, यानी ज्वैलर्स चाहें तो इसे अपनाएंगे। लेकिन बाद में इसे अनिवार्य भी किया जा सकता है, जैसे सोने के लिए हुआ था।

इससे आम लोगों को क्या फायदा होगा? जवाब: इसके कई फायदे हैं

  • शुद्धता की गारंटी: हॉलमार्किंग से आपको पता चल जाएगा कि चांदी कितनी खरी है। कोई दुकानदार आपको मिलावटी चांदी नहीं बेच पाएगा।
  • भरोसा बढ़ेगा: जब आप ज्वेलरी खरीदेंगे, तो मन में ये डर नहीं रहेगा कि कहीं ठगा तो नहीं जा रहा।
  • धोखाधड़ी रुकेगी: कई बार लोग सस्ते में चांदी खरीद लेते हैं, लेकिन बाद में पता चलता है कि उसमें चांदी कम और दूसरी धातु ज्यादा थी। हॉलमार्किंग से ये धोखा बंद होगा।
  • बिक्री में आसानी: अगर आप बाद में अपनी ज्वेलरी बेचना चाहें, तो हॉलमार्क वाली ज्वेलरी को ज्यादा भरोसा मिलता है, जिससे अच्छी कीमत मिल सकती है।

ये हॉलमार्किंग कैसे काम करती है? जवाब:

हॉलमार्किंग में चांदी की ज्वेलरी पर एक खास निशान लगाया जाता है। इसमें 6 अंकों का एक यूनीक कोड (HUID) होता है, जो हर ज्वेलरी के लिए अलग होता है। ये कोड बताता है कि ज्वेलरी BIS के स्टैंडर्ड्स के हिसाब से चेक की गई है। चांदी के लिए 6 ग्रेड होंगे, जैसे 800, 835, 900, 925,970 और 990 जो शुद्धता का लेवल दिखाएंगे।

सवाल 5: क्या पुरानी चांदी की ज्वेलरी पर भी हॉलमार्किंग होगी? जवाब:

नहीं, पुरानी ज्वेलरी पर ये नियम लागू नहीं होगा। हालांकि, अगर आप चाहें, तो अपनी पुरानी ज्वेलरी को BIS सेंटर्स पर चेक करवाकर हॉलमार्क करवा सकते हैं। ये पूरी तरह आपकी मर्जी पर है।

सवाल 6: हमें क्या करना चाहिए? जवाब:

बस इतना ध्यान रखना होगा कि 1 सितंबर के बाद जब भी चांदी की ज्वेलरी खरीदो, तो हॉलमार्क वाला निशान जरूर चेक करो। अगर दुकानदार कहे कि हॉलमार्क नहीं है, तो उससे ज्वेलरी की शुद्धता का प्रूफ मांगें।

हॉलमार्क की शुरुआत कब हुई थी?

आभूषणों पर हॉलमार्किंग की शुरुआत 1238 ईस्वी में हुई थी, जब सोने और चांदी की गुणवत्ता के पहले मानक आधिकारिक तौर पर निर्धारित किए गए थे।

हॉलमार्क के कितने चिन्ह होते हैं?

तीन प्रकार के हॉलमार्क चिह्न हैं: BIS हॉलमार्क, नॉन-BIS हॉलमार्क और इंटरनेशनल हॉलमार्क. BIS हॉलमार्क भारत में सबसे आम है, जो ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (BIS) द्वारा प्रदान किया जाता है, और इसमें गोल्ड आइटम की शुद्धता को दर्शाते हुए चार अंक शामिल हैं.

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