चाची, दादी, नानी व पापा भी नहीं ले सकते मां का स्थान
इलाहाबाद हाईकोर्ट में व्हाट्सएप चैटिंग व गूगल मैप के सुबूतों ने मां की ममता की गवाही दी। कोर्ट ने कहा कि बेटियां चाची, दादी, नानी व पापा की लाडली हो सकती हैं, लेकिन उनकी तुलना मां से नहीं की जा सकती। युवावस्था की दहलीज पर खड़ी बेटी के लिए मां का साथ जरूरी है। क्योंकि, मां जैसा हितैषी दुनिया में कोई नहीं हो सकता। इस टिप्पणी संग न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की अदालत ने तीन साल पहले पिता संग गई बेटी को मां के हवाले करने का आदेश दिया है। साथ ही पिता को निर्देशित किया है कि तीन हफ्ते में दिल्ली में रह रही मां को बेटी सौंप दी जानी चाहिए। ऐसा नहीं करने पर मां को बाल कल्याण समिति में शिकायत दर्ज कराने का अधिकार होगा। अर्जी पर महिला पुलिस अधिकारी व योग्य बाल परामर्शदाता बेटी को मां तक सुरक्षित पहुंचाने में मदद करेंगे।
भरण पोषण का दावा उचित फोरम पर अलग से कर सकती है मां
पुलिस आयुक्त लखनऊ यह व्यवस्था करेंगे कि याची के पति अपनी पदीय स्थिति से उसके हितों और अदालती आदेश के क्रियान्वयन को प्रभावित न कर सकें। साथ ही कोर्ट ने मां को यह भी स्वतंत्रता दी है कि वह भरण-पोषण का दावा उचित फोरम पर अलग से कर सकती है। दिल्ली के एक महाविद्यालय में प्रवक्ता के पद पर तैनात याची की शादी गोरखपुर निवासी भारतीय रेल सेवा (आईआरएस) के अधिकारी से 18 जनवरी 2012 को प्रयागराज में हुई थी।
इसके बाद वह पति संग उनके तैनाती स्थल कटवा (पश्चिम बंगाल), महेंद्रू घाट (पटना), दानापुर व लखनऊ में रहीं। तीन नवंबर 2012 को दिल्ली में उन्होंने बेटी को जन्म दिया। इसके बाद दोनों में मनमुटाव हो गया। पति की ओर से बात तलाक तक पहुंच गई। दंपती के बीच लखनऊ व प्रयागराज की पारिवारिक अदालत में शुरू हुई कानूनी लड़ाई के बीच पत्नी ने घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया।
पत्नी ने कई साल तक बेटी से नहीं किया संपर्क
साथ ही दादा-दादी व पिता संग रह रही बेटी की हिरासत मांग करते हुए अर्जी दाखिल की। हालांकि, बेटी मौजूदा वक्त लखनऊ में पढ़ाई कर रही है। जिला अदालत ने बेटी के बयान पर पत्नी की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि वह पिता संग रहना चाहती है। इसके अलावा यह तर्क भी दिया कि बेटी की हिरासत के लिए घरेलू हिंसा कानून के बजाय हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम के तहत अर्जी दाखिल की जा सकती है। इसके खिलाफ याची मां ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पति ने कहा, पत्नी ने मर्जी से घर व साथ छोड़ा है। बेटी का पालन-पोषण हम बेहतर ढंग से कर रहे हैं। बेटी हमारे के साथ रहना चाहती है। पत्नी ने कई साल तक बेटी से संपर्क नहीं किया।

मां के अधिवक्ता ने दी कई दलीलें
महिला ने कहा, मैंने पति का घर व बेटी को मर्जी से नहीं छोड़ा। पति मायके की संपत्ति को लेकर खफा थे। 2021 में बेटी को ले कर गोरखपुर चले गए। फिर,सहमति से तलाक के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने व घर छोड़ने का दबाव बनाने लगे। सरकारी आवास से निकाल कर सर्वेंट क्वार्टर में रखा, ताकि मैं घर छोड़ने को मजबूर हो जाऊं। 2022 की व्हाट्सएप चैटिंग व गूगल मैप की लोकेशन इस बात का सुबूत है कि मैंने कोशिश की, लेकिन बेटी से न मिलने दिया गया और न ही उससे बात कराई गई।
याची की ओर से पेश अधिवक्ता विजेता सिंह ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर आपत्ति उठाई। कहा कि युवावस्था में बेटी को मां के साथ की जरूरत होती है। दादा-दादी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं। घर में जो नौकर हैं, सभी पुरुष हैं। इन तथ्यों पर ट्रायल कोर्ट ने ध्यान नहीं दिया। इसके अलावा घरेलू हिंसा के तहत भी बच्चे की हिरासत की अर्जी दी जा सकती है। ऐसे मामलों में बच्चों के बयान से ज्यादा उनके सर्वोत्तम हित पर विचार किया जाना चााहिए।