Higher Tariffs: 100 साल में सबसे ज्यादा टैरिफ

By Dhanarekha | Updated: August 7, 2025 • 5:50 PM

हर अमेरिकी को सालाना 2 लाख का नुकसान, दुनिया पर मंदी का खतरा बढ़ा

वॉशिंगटन। अमेरिकी(American) राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल में पहली बार विदेशी सामानों पर टैरिफ(Higher tariffs) लगाने का ऐलान किया। इसका सीधा असर अमेरिका के शेयर बाजार पर पड़ा। लोगों को डर लगने लगा कि इससे सामान महंगे हो जाएंगे, कारोबार पर असर पड़ेगा

इस डर की वजह से निवेशकों ने अपने शेयर तेजी से बेचने शुरू कर दिए। नतीजा ये हुआ कि अमेरिकी शेयर मार्केट अचानक गिर गया। डाउ जोंस, S&P और नैस्डैक जैसे मार्केट इंडेक्स में 2 दिन में 10% से ज्यादा की गिरावट आई।

अमेरिका में व्यापार शुल्क का इतिहास और भविष्य की चिंताएं

कोरोना महामारी की शुरुआत में, मार्च 2020 में अमेरिकी शेयर बाजार में भारी गिरावट देखी गई थी, जिसका असर बड़ी टेक कंपनियों के शेयरों पर भी पड़ा था।

इस दौरान, निवेशकों और कंपनियों में घबराहट फैल गई थी। बाजार की खराब होती हालत को देखते हुए, तत्कालीन ट्रम्प सरकार ने टैरिफ (व्यापार शुल्क) को 90 दिनों के लिए टाल दिया था ताकि स्थिति को संभाला जा सके।

अब, एक बार फिर, डोनाल्ड ट्रम्प ने 9 अगस्त से वैश्विक स्तर पर टैरिफ लगाने की घोषणा की है। विश्लेषकों का मानना ​​है कि इस कदम से अमेरिकी बाजार को फिर से झटका लग सकता है और वैश्विक मंदी का खतरा बढ़ सकता है। यह घोषणा दुनिया भर के देशों के लिए चिंता का विषय बन गई है।

हर अमेरिकी को साल में 2 लाख ज्यादा खर्च करना होगा

अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी के बजट लैब के अनुमान के मुताबिक अमेरिका में औसत टैरिफ रेट 18.3% हो चुका है। यह 100 साल में सबसे ज्यादा है। इससे पहले 1909 में अमेरिका में औसत टैरिफ रेट 21% था।

ज्यादा टैरिफ(Higher tariffs) होने से अमेरिकी परिवारों को इस साल औसतन 2400 डॉलर (2 लाख रुपए) का एक्स्ट्रा खर्च उठाना पड़ेगा। पहले वे जो विदेशी सामान 100 डॉलर में खरीद रहे थे, अब उन्हें 118.3 डॉलर देना होगा।

कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री वेंडोंग झांग का कहना है कि आने वाले समय में अमेरिका में उन चीजों की कीमतें और अधिक बढ़ेंगी जिनमें स्टील और एल्युमीनियम का इस्तेमाल होता है, जैसे रेफ्रिजरेटर या वॉशिंग मशीन।

अमेरिका की GDP को 11.6 लाख करोड़ का नुकसान

बजट लैब के मुताबिक टैरिफ से अमेरिका की GDP 0.5% गिर सकती है। इसका मतलब है कि अमेरिका की 28 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी को एक साल में 140 बिलियन डॉलर का नुकसान होगा। भारतीय रुपए में यह 11.6 लाख करोड़ है।

टैक्स फाउंडेशन का कहना है कि टैरिफ का असर खाने-पीने की चीजों पर भी पड़ेगा। अमेरिका में केला और कॉफी पर्याप्त मात्रा में नहीं उगाई जाती है, इसलिए इनकी कीमत बढ़ेगी। मछली, बीयर और शराब पर भी महंगाई का असर पड़ेगा।

व्यापार शुल्क, धीमी आर्थिक वृद्धि, और सरकारी प्रतिक्रिया

ट्रम्प का मानना है कि टैरिफ लगाने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी, लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि इससे महंगाई बढ़ेगी और नौकरियों के अवसर कम होंगे। जब कीमतें बढ़ती हैं, तो लोग आमतौर पर कम खरीदारी करते हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियां धीमी हो जाती हैं।

हाल के सरकारी आंकड़ों ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है। जुलाई में उम्मीद से काफी कम, केवल 73,000 नई नौकरियां जोड़ी गईं, जबकि सरकार का अनुमान 1.09 लाख नई नौकरियों का था।

मई और जून में भी नौकरी के अवसर कम हुए थे, जिससे इस तिमाही में प्रति महीने औसतन 35,000 नई नौकरियां ही जुड़ पाईं। यह 2010 के बाद से सबसे कम मासिक आंकड़ा है, जो अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत देता है।

इन निराशाजनक आंकड़ों से नाराज़ होकर, ट्रम्प ने 1 अगस्त को ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स की कमिश्नर एरिका मैकएंटरफर को उनके पद से हटा दिया। ट्रम्प ने उन पर आरोप लगाया कि नौकरी की रिपोर्ट में “राजनीतिक मकसद” से हेराफेरी की गई थी।

जवाबी टैरिफ से शुरू हो सकती है ट्रेड वॉर

जब अमेरिका जैसा बड़ा देश टैरिफ लगाता है, तो दूसरे देश भी जवाबी टैरिफ लगा सकते हैं। इससे देशों के बीच ट्रेड वॉर शुरू हो जाती है। अभी कई देश अमेरिकी सामानों पर जवाबी टैरिफ से बच रहे हैं, लेकिन वे अमेरिका पर दबाव डालने के लिए जवाबी टैरिफ लगा सकते हैं।

उदाहरण के लिए 2018-19 के टैरिफ वॉर में जब ट्रम्प ने चीन पर ज्यादा टैरिफ(Higher tariffs) लगाए थे, तो चीन ने भी सोयाबीन, ऑटोमोबाइल्स और कई अमेरिकी सामानों पर टैक्स लगाया था।

अमेरिकी सोयाबीन की चीन में काफी खपत है। चीन के टैरिफ लगाने से सोयाबीन की कीमत 25% ज्यादा महंगी हो गई, जिससे निर्यात में 50% की गिरावट आई। इससे अमेरिकी किसानों को बहुत नुकसान हुआ था।

दुनिया पर मंदी आने का खतरा बढ़ा

डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ नीति के कारण दुनिया में मंदी आने का खतरा बढ़ गया है। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और आर्थिक विशेषज्ञों ने इस पर चेतावनी दी है कि अगर टैरिफ वॉर आगे बढ़ा तो वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी हो सकती है।

IMF ने 22 अप्रैल को प्रकाशित रिपोर्ट में कहा कि अगर अमेरिका और अन्य देश टैरिफ वॉर में उलझते हैं, तो वैश्विक विकास दर 2025 में 3.3% से घटकर 3.0% हो सकती है।

उच्च टैरिफ का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना होता है। यह आयातित सामानों को महंगा बनाकर स्थानीय उत्पादों की मांग को बढ़ाता है।

क्या उच्च टैरिफ से महंगाई बढ़ती है?
हाँ, उच्च टैरिफ से आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती हैं। इससे उपभोक्ताओं को उन्हीं सामानों के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है और महंगाई बढ़ जाती है।

उच्च टैरिफ का नौकरियों पर क्या असर पड़ता है?
उच्च टैरिफ से घरेलू उद्योगों में नौकरियां बढ़ सकती हैं, लेकिन यदि जवाबी टैरिफ लगते हैं, तो निर्यात-आधारित उद्योगों में नौकरियां घट सकती हैं।

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