‘RLJP अब NDA का हिस्सा नहीं है’, पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस का बड़ा ऐलान
भारतीय राजनीति में बिहार की भूमिका हमेशा से अहम रही है, और अब एक बार फिर से राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के प्रमुख पशुपति कुमार पारस ने एक बड़ा राजनीतिक ऐलान करते हुए कहा है कि उनकी पार्टी अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा नहीं रही।
इस घोषणा ने न केवल NDA के भीतर उथल-पुथल पैदा की है, बल्कि बिहार की आगामी चुनावी रणनीतियों पर भी गहरा असर डाल सकता है। आइए विस्तार से समझते हैं पूरा मामला।
कौन हैं पशुपति कुमार पारस?
पशुपति कुमार पारस, दिवंगत रामविलास पासवान के छोटे भाई हैं और उन्होंने 2021 में चिराग पासवान से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई थी – राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP)। वे बिहार के हाजीपुर सीट से सांसद हैं और हाल ही में खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री भी रहे।
पारस ने क्या कहा?
पशुपति पारस ने प्रेस वार्ता में कहा:
“NDA में हमारी उपेक्षा की गई है। हमें लोकसभा चुनाव में सम्मानजनक सीटें नहीं दी गईं। ऐसे में हमारा NDA में बने रहना संभव नहीं है। RLJP अब NDA का हिस्सा नहीं है।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा नेतृत्व ने उनकी पार्टी को दरकिनार किया और टिकट बंटवारे में कोई परामर्श नहीं किया गया।
क्या है RLJP और LJP में फर्क?
रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) दो भागों में टूट गई:
- एलजेपी (रामविलास) – चिराग पासवान के नेतृत्व में
- RLJP – पशुपति पारस के नेतृत्व में
2021 में एनडीए ने पशुपति पारस को केंद्रीय मंत्री बनाकर समर्थन दिया था, लेकिन इस बार चिराग पासवान को ज्यादा तवज्जो मिलती दिख रही है।
क्या यह फैसला चुनावी रणनीति है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि RLJP का NDA से अलग होना एक सोची-समझी रणनीति भी हो सकती है। 2024 लोकसभा चुनाव नजदीक हैं और RLJP को शायद ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभाने की उम्मीद हो। यह भी संभव है कि पारस किसी तीसरे मोर्चे या महागठबंधन के साथ आने की तैयारी कर रहे हों।
आगे का रास्ता क्या होगा?
RLJP की अगली चाल पर सभी की निगाहें हैं। कुछ संभावनाएं:
- महागठबंधन में शामिल होना
- स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ना
- चिराग पासवान से सुलह की कोशिश
बहरहाल, अभी तक पारस ने किसी भी गठबंधन की घोषणा नहीं की है, लेकिन उनके इस बयान ने राजनीतिक हलकों में सरगर्मी बढ़ा दी है।
बिहार की राजनीति पर असर
बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं और यहां का जातीय समीकरण बेहद जटिल है। पासवान वोटबैंक को साधने के लिए एनडीए और विपक्ष दोनों सक्रिय हैं। ऐसे में RLJP का अलग होना एनडीए के लिए बड़ा झटका माना जा सकता है, खासकर अगर RLJP अपने दम पर भी कुछ सीटों पर असर डालती है।
पशुपति पारस का NDA से अलग होने का फैसला बिहार और केंद्र की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकता है। अब देखना यह होगा कि RLJP आगे किस राजनीतिक राह पर बढ़ती है और इससे 2024 लोकसभा चुनाव में क्या समीकरण बनते हैं।