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HQ-29: चीन का नया HQ-29 सिस्टम चर्चा में

Dhanarekha
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HQ-29: चीन का नया HQ-29 सिस्टम चर्चा में

ब्रह्मोस मिसाइल पर उठे सवाल

बीजिंग: चीन ने HQ-29 नामक एक नए एयर डिफेंस सिस्टम का अनावरण किया है, जिसकी तुलना रूस (Russia) के S-500 से की जा रही है। सोशल मीडिया पर इसकी पहली तस्वीरें सामने आईं, जिनमें छह-एक्सल वाले ट्रांसपोर्टर पर विशाल मिसाइल कैनिस्टर नजर आए। रिपोर्ट के अनुसार, हर कैनिस्टर का व्यास लगभग 1.5 मीटर है, जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि यह चीनी इंटरसेप्टर मिसाइलों से कहीं ज्यादा शक्तिशाली होगा। विशेषज्ञ इसे चीन के रक्षा नेटवर्क में बड़ा बदलाव मान रहे हैं

क्षमता और संभावित ताकत

HQ-29 को लेकर दावा किया जा रहा है कि यह निचली पृथ्वी कक्षा में मौजूद उपग्रहों को निशाना बना सकता है और लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को भी रोक सकता है। चीनी मीडिया ने इसे “डबल-बैरल सैटेलाइट हंटर” कहा है, जो 500 किलोमीटर तक की रेंज में काम करने में सक्षम बताया गया है। हालांकि आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

इसे HQ-19 से उन्नत बताया गया है, जिसका एक संस्करण पाकिस्तान (Pakistan) उपयोग करता है। HQ-19 को अमेरिका (USA) के THAAD सिस्टम जैसा बताया गया था, किंतु विशेषज्ञों ने उस दावे को हमेशा खारिज किया। अब HQ-29 को अंतरिक्ष की सीमा के ऊपर भी इंटरसेप्शन करने योग्य माना जा रहा है। यही वजह है कि इसकी तुलना रूस के S-500 और अमेरिका की स्टैंडर्ड मिसाइल-3 से की जा रही है।

सैटेलाइट किलर की संज्ञा

HQ-29
Brahmos

चीनी मीडिया ने HQ-29 को “सैटेलाइट किलर” की उपाधि दी है। माना जा रहा है कि इसमें ड्यूल प्रोफाइल है, जिससे यह बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ-साथ उपग्रहों को भी नष्ट कर सकता है। यदि ऐसा साबित हुआ, तो चीन उन चुनिंदा देशों में शामिल होगा जिनके पास एंटी-सैटेलाइट (ASAT) क्षमता मौजूद है।

फिर भी भारत के ब्रह्मोस (BrahMos) मिसाइल के लिए HQ-29 कितना असरदार होगा, इस पर संदेह बना हुआ है। ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसकी स्पीड Mach 2.8 से 3 तक होती है और यह जमीन के बेहद करीब उड़ती है। ऐसी उड़ान शैली किसी भी एयर डिफेंस सिस्टम के लिए चुनौतीपूर्ण होती है।

ब्रह्मोस के सामने चुनौतियां

विशेषज्ञों का कहना है कि HQ-29 के लिए ब्रह्मोस को रोकना अत्यंत कठिन होगा। अगर मिसाइल को समय रहते डिटेक्ट कर लिया जाए और सिस्टम को लो-आल्टिट्यूड इंटरसेप्शन के लिए सक्षम बनाया गया हो, तो संभावना है कि यह कामयाब हो। लेकिन ब्रह्मोस की स्पीड, टेरेन-हगिंग उड़ान और मार्ग बदलने की क्षमता इसे लगभग अजेय बना देती है।

भारत वर्तमान में ब्रह्मोस-नेक्स्ट जेनरेशन और ब्रह्मोस-2 पर काम कर रहा है, जिनकी गति और क्षमताएं मौजूदा ब्रह्मोस से कहीं ज्यादा होंगी। ऐसे में भविष्य में HQ-29 के लिए इन हाइपरसोनिक हथियारों को रोक पाना लगभग असंभव होगा।

HQ-29 को किस सिस्टम से तुलना की जा रही है?

इसे रूस के S-500 और अमेरिका की स्टैंडर्ड मिसाइल-3 के बराबर बताया जा रहा है। इसे एक्सोएटमॉस्फेरिक इंटरसेप्शन के लिए डिजाइन किया गया माना जा रहा है।

क्या HQ-29 ब्रह्मोस मिसाइल को रोक पाएगा?

ब्रह्मोस की उड़ान शैली और गति इसे कठिन लक्ष्य बनाती है। HQ-29 के लिए इसे रोकना संभव तो है, लेकिन इसकी सफलता की संभावना बेहद कम है।

चीन को HQ-29 से क्या रणनीतिक लाभ मिलेगा?

अगर यह सिस्टम उपग्रहों को भी निशाना बना सका, तो चीन उन देशों की सूची में आ जाएगा जिनके पास एंटी-सैटेलाइट क्षमता है। इससे अंतरिक्ष क्षेत्र में उसकी शक्ति और बढ़ जाएगी।

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